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पर्यावरणीय संकट क्या है इसके क्या कारण है
पर्यावरणीय संकट
परिचय :-
आपदाएं मनुष्य को हमेशा साथी रही है। किसी भी प्राकृतिक आपदा के परिणामस्वरूप मनुष्य की जीवनक्षति , चोट पहुंचाना तथा स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं। इसके अलावा जमीन - जायदाद व रोजी - रोटी के साधनों को हानि पहुंचती है। प्राकृतिक आपदाएं , जैसे - भूकम्प , चक्रवात , सुनामी , जंगल की आग , बाढ़ , भू - स्खलन तथा सूखा लगातार हमला करते रहते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के पैदा होने के बहुत से कारण है। प्राकृतिक आपदाएं बहुत सारे लोगो की जिंदगी पर विपरीत प्रभाव डालती है। इसके कारण बहुत सारी संपति व सुविधाओं को हानि पहुंचती है। प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त मानव स्वयं भी आपदाओं का कारण बनता है। दूषित गैसो के रिसाव व गंदे र्दवो द्रवो के रिसाव के कारण पर्यावरण में प्रदूषित फैलता है, औद्यौगिक दुर्घटना में , विषैल पदार्थो के लाने - ले जाने से होने वाली दुर्घटनाएं , नाभिकीय परिवर्तनों के दौरान विकिरणों का फैलना , जैसी दुर्घटनाएं में , आजकल आम हो गई हैं। इस अध्याय की शुरुआत प्राकृतिक संकटों के परिचय तथा उनके वर्गीकरण से हुई है। इसके बाद इसके कारणों का वर्णन किया गया है, जिसमें भूकम्प , बाढ़ , चक्रवात तथा सूखे के विषय में बताया गया है। आगे इन प्राकृतिक संकटों के बचाव के साधनों की चर्चा भी करेंगे ।
प्राकृतिक संकट :-
प्राकृतिक पर्यावरण में पैदा होने वाले संकट मानव गतिविधियों का ही परिणाम होते है। प्राकृतिक आपदाओं के कई रूप हैं , किन्तु इन सभी के परिणामस्वरूप जिस स्थान पर यह घटित होती वहां बुरी तरह तबाही होती है। आग की दुर्घटना , लड़ाइयां तथा बम विस्फोट , खनो में दुर्घटना में , वैश्विक प्रदूषण , नाभिकीय दुर्घटना में , जंग व ग्रह - विवाद आदि प्राकृतिक संकटों के कुछ उदहारण हैं। प्राकृतिक आपदाओं को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है- अचानक आने वाली आपदा में , युद्ध तथा गुप्त आपदा में । ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं जिसके कारण उपजाऊ हरित मैदान बंजर भूमि में बदल रहे हैं। ओज़ोन परत में छेद होने के कारण पृथ्वी के पर्यावरण में पराबैंगनी विकिरणें तेजी से असर डाल रही हैं। पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालने वाली आम आपदाएं है - भूकम्प , सूखा , बाढ़ , तेज़ हवा , भूस्खलन तथा चक्रवात आदि। यहां कई प्रकार के अधिवेशन प्रसंविदा तथा संधियां देशों के बीच उन मुद्दों के लिए हुए जीन से मानव गतिविधियों के कारण पर्यावरण को क्षति पहुंची है। जल जीवन का मुख्य कारक है किन्तु पानी की न्यूनता तथा अधिकता प्राकृतिक आपदा का मुख्य कारण है। उदाहरणार्थ चक्रवात के कारण मूसलाधार वर्षा , असाधारण रूप से तेज हवा में तथा बढ़ते हुए विशाल तूफ़ान विनाशक आपदाएं है। जबकि वर्षा की न्यूनता से सूखे की स्थिति होती है , जिसका अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है जैसे कृषि क्षेत्र में पानी कि उपलब्धता या अन्य ऐसी गतिविधियां जिनमें पानी कि जरूरत होती है। संक्षिप्त रूप में प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य के साथ लगातार रही हैं। भूकम्प , चक्रवात , बाढ़ , सूखा , भू - स्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं लगातार पृथ्वी पर आघात करती रही है।
भूकम्प :-
पृथ्वी के भू में भूतलीय परिवर्तनों के कारण ऊर्जा उत्पन्न होने से जो कम्पन होता है । उससे भूकम्प पैदा होता है । यह भू - गर्भ में किसी प्रकार के परिवर्तन होने के पर भूकम्प के कई प्रकार के प्रभाव होते है। इसके कारण क्रिया होने पर भू - स्खलन , चट्टानों का गिरना तथा बांधो का टूटना होता है जिससे बाढ़ व कई प्रकार की क्षति इनसे संबधित क्षेत्रों में होती है। भूकम्प के कारण शहरी क्षेत्रों में आग लगना तथा बाढ़ - समस्या पानी टैंक टूट जाने से गैस लीक होने से या बिजली की तारों के टूट जाने से होता है ऐसे क्षेत्र जो भूकम्प संभावित है वहां इन तत्वों का अधिक खतरा he-
• बहुमंजिले इमारतें
• कमजोर इमारतें
• कच्चे गारे से बनी इमारतें
• पुरानी इमारतें तथा वे इमारतें जो मरम्मत करने से कमजोर हो गई है।
भूकम्प के समय ज्यादातर बड़ी - बड़ी इमारतें गिरने से लोगो की जीवन हानि होती है। अतः भूकम्प में मानव हानि रोकने के लिए आवश्यक है कि इमारतें इतनी मजबूत हो की आसानी से गिरे नहीं।
बाढ़ :-
पानी जिंदगी कि अनिवार्यता है किन्तु इसकी अधिकता या कमी मानव जीवन के लिए परेशानी पैदा कर देती है। पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। यदि वर्षा कम हो तो पानी की कमी या सूखे का कारण बनती है और अत्यधिक वर्षा बाढ़ के रूप में अपने साथ सब बहा ले जाती है। एक तरफ जल जीवनदाता है तो दूसरी तरफ जल बाढ़ के रूप में आपदा का एक भयानक रूप है। बाढ़ वर्ष में एक बार किसी क्षेत्र की तबाही का कारण बन जाती है। बाढ़ का मुख्य कारण या तो भारी वर्षा है या फिर ऊंचे पर्वतों पर बर्फ का पिघलना । जिसके कारण नदियों का जल स्तर बढ़ जाता है तथा बाढ़ का रूप ले लेता है । वर्षा का घटना तथा नदियों द्वारा मृदा को बहा ले जाने के कारण इसके गंभीर विपरीत प्रभाव उत्पन्न होते हैं। बाढ़ के विनाशकारी पानी में डूब जाने के कारण मानव क्षति अधिक होती है। बाढ़ के समय जीवन बचाव के लिए पहले ही उस क्षेत्र से दूर रहकर तथा पानी के बहाव को नियंत्रित करके संभव बनाया जा सकता है।
सूखा :-
सूखा तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से मुख्य अंतर यह है कि सूखा भूकम्प तथा बाढ़ कि भांति अचानक नहीं आता । बारिश की कमी होने पर सूखे की स्तिथि पैदा होती है। सूखे को चार वर्गों में बांटा जा सकता है - मौसमी सम्बन्धी , जल सम्बन्धी , कृषि सम्बन्धी तथा अकाल सम्बन्धी । सूखे के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से जीवन पर प्रभाव डालते हैं। आद्रता की न्यूनता सूखे की समयावधि सिंचाई सुविधाएं तथा प्रभावित क्षेत्र के आकार पर सूखे की गंभीरता निर्भर करती है। इसके बाद सूखे का असर आर्थिक ढांचे पर पड़ता है जैसे - फसल का नाश होना , पालन , मत्स्य उद्योग आदि। इसके अलावा इसका बुरा प्रभाव सामाजिक ढांचे पर पड़ता है , जैसे - भोजन की कमी , मानव जीवन की क्षति व जल प्रयोग के लिए विवाद आदि। संक्षिप्त तौर पर सूखा , आर्थिक , पर्यावरणीय तथा सामाजिक हानि का कारण बनता है। इस दौरान राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी रहती है कि वह प्रभावित क्षेत्र में लोगो को बचाने एवं उनके पुनर्वास के कार्य करें। पुनर्वास के अतंर्गत लोगो को ऐसी सहायता प्रदान करना जिससे वे अपनी जररूत का सामान खरीद सकें। उनको स्वास्थ्य सुविधाएं देने तथा अकाल व सूखे के समय जो उनकी संपत्तियों का नुक़सान हआ है , उसकी भरपाई करना शामिल है। इस प्रकार के इस जटिल समय के बाद अनिवार्य है जब लोग अपने घर संपति को खो चुके होते हैं , अपना स्थान छोड़ने को मजबूर हो तथा परिवारजनों की मृत्यु से पीड़ित हों। इस कार्यक्रम में लोगो को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना , उन्हें परामर्श देना , साजो - सामान की व्यवस्था करना - जैसे - बर्तन उपलब्ध कराना अपने निवास स्थान पर लौटने के लिए यातायात प्रबन्ध करना , उनके घर पुनः बसानें में उनकी सहायता करना आदि शामिल है। प्राकृतिक आपदाओं तथा मानवकृत आपदाओंकी जिम्मेदारी भारतीय सरकार के अंतर्गत , केवल सूखे को छोड़कर ग्रह विवाद मंत्रालय कि है । सूखे से निपटने की जिम्मेदारी कृषि मंत्रालय की है। प्राकृतिक आपदा प्रबन्धन व्यवस्था के कार्य संसाधन मंत्रालय देश के अनेक राज्यो में सिंचाई को सुधारने व सहयोग देने का कार्य करता है।
चक्रवात :-
चक्रवात के परिणामस्वरूप मूसलाधार वर्षा , असाधारण रूप से तेज हवाएं तथा बहुत अधिक तूफ़ान आते हैं , जो कि विनाशकारी आपदा का रूप है। चक्रवात के कारण मानव जीवन तथा संपति हानि बहुत अधिक होती है। चक्रवात के कारण आसमान में उड़ने वाले हवाई तथा गगनचुंबी इमारतें उजड़ने से कृषि सम्बन्धी - सुविधाएं संचार सुविधाएं , जीवन सम्बन्धी सुविधाएं, सभी बिगड़ जाती हैं। इस आपदा में लोगो की सहायता के लिए केंद्रीय सरकार अपना विशेष योगदान देती है। वह भौतिक तथा वित्तीय संसाधनों का इंतजाम करती है , जैसे - यातायात के साधनों व लोगो को चेतावनी देने का , लोगो को राशन देने का तथा अन्य जरूरतों को पूरा करती है। इस प्रकार की सहायता देने के लिए एक अलग से सहायतार्थ विभाग की स्थापना राज्यो में की जाती है। सहायता गतिविधियां जिला स्तर पर एक समूह द्वारा चलाई जाती है जिसका नेतृत्व जिला अधिकारी करते है। इसकी सहायता क्षेत्रीय स्तर के संगठन तथा स्वैच्छिक संगठन जिनकी स्थापना ब्लॉक व गांव के स्तर पर की जाती है, करते हैं। जिला स्तर पर कमेटियां लोगो के प्रतिनिधियों का NGOs का तथा अन्य सरकारी सदस्यों व लोगो का प्रतिनिधित्व करती है।
सुनामी:-
सुनामी एक जापानी शब्द है जिसका अंग्रेजी अनुवाद बंदरगाह लेहरे है । सुनामी एक प्रकार की लहरों की श्रृंखला है को समुन्द्र में किसी आवेगशाली उपद्रव के कारण पैदा होती है जो कि जल स्तम्भों को अपने स्थान से हिलाकर रख देती है। सुनामी उन लोगो के जीवन तथा संपति के लिए एक भयानक खतरा है जो समुन्द्र के पास रहते है। ज्वालामुखी विस्फोट , भूकम्प , भू - स्खलन तथा अंतरिक्ष पिंड तक सुनामी को उत्पन्न करते है। पानी की सतह में होने वाले भू - स्खलन या ज्वालामुखी विस्फोट भी टी - सुनामी का कारण हो सकते है। संसार में जो देश समुन्द्र तट के पास बसे हैं वहां सुनामी के कारण बरबादी का डर बना रहता है । इसीलिए सरकार विभिन्न प्रकार के ऐसे यंत्रों का सहारा लेती है , जिससे सुनामी की तीव्रता की जांच की जा सके या ऐसे पर्यावरणीय परिवर्तनों की जांच की का सके जिससे इस भयानक आपदा का पता लगे।
https://lifechangingonlineeducation.blogspot.com/2020/07/what-is-environmental-calamities-in.html
आंधियां :-
उष्णकटबंधीय चक्रवात का सामान्य नाम आंधी है। हॅरीकेन तेज शक्तिशाली तूफ़ान होते है जो कि समुन्द्र के उपर से उत्पन्न होते है तथा ज्यादातर तटीय क्षेत्रों के उपर चलते हैं। असाधारण तेज आंधी , भारी वर्षा तथा बढ़ती हुई तेज हवाओं की गतिविधियों से क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो जाते है। हॅरीकेन ज्यादातर गोल आकार के होते है जो कि केंद्र के इर्द गिर्द घूमती रहती है जिसे हॅरीकेन की आंख कहा जाता है । इसके अंदर का भाग तुलनात्मक रूप से ज्ञात होता है। हॅरीकेन तेज तूफ़ान से उत्पन्न होते है , इन्हे अधिक शक्तिशाली , वाष्प की उष्णता , उष्णटिबंधीय पानी , तेज हवाएं तथा हवा का दवाब बनाते हैं। एक तूफ़ान " हॅरीकेन " में तब परिवर्तित होता है जब हवाओं कि गति 74 मील प्रति घंटा या उससे अधिक होती है। इन्हे एशिया में चक्रवात , मध्य अमेरिका में हॅरीकेन तथा पूर्व में प्रचंड आंधी कहा जाता है। हॅरीकेन बहुत अधिक गर्मी के लिए होते है जो कि वृहत के स्तर तक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। ये गर्मी , समुन्द्र की गर्म - आर्द्र हवा से लेते है तथा इसे तूफ़ान में पानी की बूंदों के रूप में छोड़ देते हैं।
इस प्रक्रिया ने , आर्द्र हवा बड़ी होती है तथा आर्द्रता बूंदों में परिवर्तित होकर छिपी हुई गर्मी छोड़ती है तथा भंवर पैदा करने कि ऊर्जा देती है । प्रचलित हवाओं के साथ , हवा का भंवर कई सौ किलोमीटर व्यास के साथ , केंद्र की ओर पूरे संवेग से बढ़ते हुए अपनी गति बना लेता है। चक्रवात तूफानों की एक प्रवृति होती है कि वे उत्तर कि ओर मैदानों की तरफ बढ़ते हैं। इसका उदाहरण बंगाल की घाटी में आने वाले चक्रवात है। संयुक्त राज्यो आने वाले हॅरीकेन ऐसे उदहारण है जिससे बहुत अधिक मौसमी घटनाओं ने काफी कुछ उजाड़ा है। इन हॅरीकेन के कारण करीब 250000 लोग बेघर हुए , जिससे 85000 घर उजड़े तथा 810 बिलियन की क्षति हुई । मुख्यतः ये तूफानों समुन्द्रो में उत्पन्न होते है और जब एक बार तूफ़ान मैदानों में पहुंचता है तो बहुत सारी जिंदगी तथा संपत्तियों की हानि होती है। सौभाग्यश , चक्रवातों की गतिविधियों को गहराई से सैटेलाइट के माध्यम से देखा जा सकता है तथा इसके बचाव के उपाय समय से किए जा सकते है।
ज्वालामुखी :-
ज्वालामुखी पृथ्वी कि बाहरी सतह पर होने वाला विस्फोट है , जिससे गर्म लावा , राख तथा गैस पृथ्वी के नीचे से बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी नाइट्रोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मुख्यतः ज्वालामुखी की प्रक्रिया वहां होती है, जहां भूमि की सतह गहराई में अपने मार्ग से विचलित होती है या एक बिंदु पर मिलती है इससे पृथ्वी कि सतह में शताब्दियों में जमा नाइट्रोजन का रिसाव थोड़ी मात्रा में होता रहता है तथा ये वातावरण में महत्वपूर्ण नाइट्रोजन गैस का एक कुंड बनाने में सहायता करती है। जब ज्वालामुखी राख , So² तथा धूल के कण वातावरण की एक सतह तक पहुंचते है , सूरत की गर्मी Troposphere को ठंडा करती है , जो कि भूमंडल के चारो तरफ मौसम के तरीको को बदलता है। ज्वालामुखी किस प्रकार घटित होता है यह अभी तक विचारपूर्ण विषय है । इस प्रकार की घटनाओं का सिलसिला वहां होता है जहां कोई नहीं रहता जहां सिर्फ चट्टानें है , रेत के पहाड़ है जहां ज्वालामुखी आइलैंड बने है तथा लावा बहता है। ज्वालामुखी एक भयानक घटना है , इसके आस - पास के सभी क्षेत्र केवल चट्टानों का जंगल बनकर रह जाते है क्योंकि वहां किसी प्रकार की माननीय गतिविधियां संभव नहीं होती। न्यू इंग्लैंड तथा पश्चिम यूरोप में एक ऐसा प्रसिद्ध साल था जब मौसम परिवर्तन हुए तथा गर्मी नहीं पड़ी , यूनाइटेड राज्यो व कनाडा में भी गर्मी नहीं पड़ी।
आपदाओं से निपटने के लिए प्रबन्ध तथा तैयारी:-
इस प्रकार के खतरों से निपटने के लिए आपातकालीन तैयारी करना जरूरी है । इस प्रकार के कार्यक्रम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए लंबी प्रक्रिया है जो हमारी गतिविधियों को मजबूत बनाते है। यह एक प्रकार का प्रशिक्षण है जिसमें आपदाओं के घटने से पहले ही उनसे निपटने के लिए तैयार किया जाता है। 1989 में संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सभा में इस प्रकार के कार्यक्रमों को अपनाने का निर्णय लिया गया , जिससे मानव जीवन को प्राकृतिक आपदाओं के भयंकर प्रभाव से बचाया जा सके तथा इनके बुरे प्रभावों को कम किया जा सके। इन्हीं सब उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए दशक 1990 - 2000 को प्राकृतिक आपदाओं को कम करने का अन्तर्राष्ट्रीय दशक ( IDNDR) माना गया। इन योजनाओं के आधार बिंदु थे - आपदाओं को कम करने के लिए एक समकालीन सोच , स्वरक्षात्मक नीतियों को अपनाकर प्रत्येक देश तरह समुदाय संसाधनों का सही व विचारपूर्ण प्रयोग करें , आपदाओं को कम करने की प्रक्रिया में भाग , खतरों के घटने की प्रक्रिया को कम करना व इसकी जांच सही प्रकार से करने तथा समय से इसके घटना की सूचना देना। IDNDR प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए , उनसे निपटने के लिए तथा उस स्थान से जहां ये आपदाएं घटित हो सकती है , हटने के लिए निर्देश देता है । वर्ष 2000 से
IDNDR की नीतियों के तहत यह तय किया गया है कि सभी देशों को यह शांति योजनाएं राष्ट्रीय या स्थानीय स्तर पर , इन आपदाओं में बचाव की , इनसे निपटने की तथा अपने समुदाय में इसकी पूर्ण की नीतियों को अपनाएंगे।
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