Search This Blog
All about education , Letters , question answer ,essay , important topics , notice , report , diary entry , complain letters , all subject notes , notes written tricks , essay writing tricks , all about education , articles
Featured
- Get link
- Other Apps
भुगतान शेष एवं व्यापार शेष में विभेद कीजिए।इनमे असाम्य को दूर करने के लिए आप सुझाव देंगें ?
भुगतान शेष एवं व्यापार शेष में विभेद कीजिए। इनमे असाम्य को दूर करने के लिए आप सुझाव देंगें ?
भुगतान शेष :- भुगतान संतुलन एक देश के शेष - विशेष के साथ एक वर्ष के दौरान किए गए समस्त मौद्रिक संव्यवहारों लेखा - जोखा है ।
भुगतान शेष के घटक -
(i) चालू खाता पर भुगतान शेष
(ii) पूंजीगत खाते पर भुगतान शेष
ये मौद्रिक संव्यवहार निम्न कारणों से पैदा होता है -
(i) एक देश शेष विशेष को वस्तुओ का निर्यात तथा वस्तुओ का आयात करता है । इन प्रवाहों के बदले मौद्रिक प्राप्तियां हैं तथा भुगतान विदेशी मुद्रा में होते हैं ।
(ii) वस्तुओ को दृश्य मदो का नाम भी दिया जाता है।
(iii) दो देशों के बीच पूंजी का भी आवागमन होता है ।
कर मुक्त व्यापार में अन्तर्राष्ट्रीय विशिष्टीकरण सभी देशों के लिए लाभदायक होता है । देश उन वस्तुओ के उत्पादन पर विशिष्टीकरण प्राप्त करते हैं जिनमें उन्हें तुलनात्मक लाभ उपलब्ध है तथा उनका निर्यात करके बदले में वे वस्तुएं आयात करते है , जिनके उत्पादन में उन्हें तुलनात्मक हानि है । वस्तुओ के आयात - निर्यात की तरह ही , सेवाओं का भी देशों के बीच आदान - प्रदान होता है । इसके अलावा , विदेशो में किए गए निवेश पर ब्याज मिलता है जिसे पूंजी की सेवाओं का प्रतिफल माना जा सकता है। इस प्रकार हम देश के निर्यातो दो भागो में बांट सकते है - वस्तुओ और सेवाओं का निर्यात । इसी तरह आयात के दो घटक है - वस्तुओ और सेवाओं का आयात । व्यापार के अतिरिक्त , विभिन्न देशों के बीच दूसरा महत्वपूर्ण आर्थिक सम्बन्ध पूंजी का चलन है ।
व्यापार शेष :- इसके अतंर्गत वस्तुओ के व्यापार को व्यक्त किया जाता है।
A¹= वस्तुओ के निर्यात ( दृश्य मदों के निर्यात )
A²= वस्तुओ के आयात
इसका शुद्ध मूल्य (A¹ - A² ) को व्यापार शेष कहते है।
अदृश्य मदों का शेष - इसके अतंर्गत अदृश्य वस्तुओ ( सेवाओं ) को व्यक्त किया जाता है।
B¹= अदृश्य मदों के निर्यात
B²= अदृश्य मदों के आयात
इसका शुद्ध मूल्य ( B¹ - B² ) होता है।
A + B के योग को चालू खाते का भुगतान शेष कहा जाता है । भुगतान शेष पर घाटे की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब दृश्य एवं अदृश्य मदों के निर्यात से प्राप्त विदेशी मुद्रा की राशि , उनके आयात के बदले विदेशी मुद्रा में किए गए भुगतान कि राशि से कम हो । इसका आशय यह है कि देश द्वारा जितनी विदेशी मुद्रा अर्जित कि गई है , उससे अधिक खर्च की जा रही है ।
https://www.edukaj.in/2020/08/what-do-you-understand-by-national.html
असंतुलन को दूर करने के उपाय -
1. मौद्रिक नीति : अवस्फीति की नीति का पालन - अवस्फीति मौद्रिक नीति देश में निवेश गतिविधि कम करने का प्रयास करती है और इस उद्देश्य के लिए मंहगी मुद्रा व साख नीति अपनाती है । उदहारण के लिए , बैंक दर नीति के अंतर्गत , केंद्रीय बैंक , बैंक दर को बढ़ा देता है , इससे अन्य बैंको की ब्याज दरों में वृद्धि होती है । इससे बैंको से ऋण लेना महंगा हो जाता है एवं साख की मांग कम हो जाती है तथा अर्थव्यवस्था में निवेश का स्तर गिरता है । भुगतान शेष में घाटे की स्थिति होने पर अवस्फीति नीति के पालन का लक्ष्य निवेश गतिविधि को कम करना होता है । निवेश गतिविधि में कमी होने पर , गुणक के माध्यम से , राष्ट्रीय आय ने कई गुना ज्यादा गिरावट होती है । जैसे - जैसे राष्ट्रीय आय का स्तर गिरता है , आयात भी कम हो जाते है तथा यह कमी भुगतान शेष के घाटे को कम कर सकती है । कड़ी मौद्रिक नीति भी को उपभोग व्यय को कम करने में सफल हो , इसी प्रकार के परिणाम प्राप्त कर सकती है ।
2. राजकोषीय नीति : व्यय में कटौती - राजकोषीय नीति कराधान तथा सरकारी व्यय के माध्यम से काम करती है । सरकार व्यय में कमी करने के दृष्टिकोण से या तो सरकार प्रत्यक्ष अथवा अपेत्यक्ष करों को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में निजी निवेश के स्तर में कमी ला सकती है या सरकारी व्यय को घटा सकती है।
3. विनिमय दर में मूल्यह्रास - मुक्त विदेशी मुद्रा बाजार में विनिमय दर में चलन , जिसके कारण किसी देश की मुद्रा का मूल्य अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में बदलता है , मूल्यह्रास या मूल्यवृद्धि कहलाता है । यदि कोई देश मुक्त विदेशी मुद्रा बाजार में मूल्यह्रास की नीति अपनाता है तो उसके आयात कम हो जाएंगे जबकि निर्यातो में वृद्धि होगी । इससे देश को अपनी भुगतान शेष की समस्या का समाधान करने में सहायता मिलेगी ।
4. अवमूल्यन - स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर चलन संभव नहीं है । अवमूल्यन का तात्कालिक प्रभाव यह होता है कि सापेक्षिक कीमतें बदल जाती है । इसके परिणामस्वरूप आयात हतोत्साहित होंगे एवं आयातों पर खर्च कम हो जाएगा । आयात कीमतों में वृद्धि अक्सर घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करती है , इसीलिए आयात प्रतिस्थापन होता है । निर्यातकों की अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ जाती है , क्योंकि विदेशी मुद्रा में व्यक्त उनकी निर्यात कीमतें कम हो जाती हैं । इस प्रकार भुगतान शेष का घाटा भरा जा सकता है , परंतु यह उस देश के आयातों की मांग लोच (Dm) एवं विदेशो में उसके निर्यातों की मांग लोच (Dx) पर निर्भर करता है । भुगतान शेष में सुधार तभी संभव है यदि इन लोचों का जोड़ एक से अधिक है ।
अर्थात् Dm + Dx > 1
इसे मार्शल - लर्नर शर्त कहा जाता है । यदि Dm + Dx < 1 तो अवमूल्यन से भुगतान शेष में घाटे की स्थिति और बिगड़ जाएगी , इसीलिए अवमूल्यन नहीं किया जाना चाहिए ।
5. प्रत्यक्ष नियंत्रण - इसको दो हिस्सो में बांटा जाता है :। (i) व्यापर नियंत्रण तथा (ii) विनिमय नियंत्रण ।
(i) व्यापार नियंत्रण - इसके अतंर्गत आयात प्रशुल्क (आयातों पर कर ) आता है जिसके कारण देश में आयोजित वस्तुओ की कीमतें बढ़ जाती है जिससे घरेलू उपभोग हतोत्साहित होता है । आयात व्यय कम होता है तथा देश में आयात प्रतिस्थापक वस्तुओ के उत्पादन को प्रोत्साहित मिलता है । निर्यात सहायता के परिणामस्वरूप विदेशो में वस्तुएं सस्ती हो जाती है जिससे निर्यात प्रोत्साहित होता है । कोटा ( Quota ) किसी वस्तु की आयात की मूल मात्रा को किसी विशिष्ट मात्रा तक सीमित रखता है । इसके परिणामस्वरूप आयात व्यय में कमी आती है ।
(ii) विनिमय नियंत्रण - इससे विदेशो मुद्रा की मांग को विदेशो मुद्रा की उपलब्ध पूर्ति के बराबर किया जाता है । इसके महत्वपूर्ण उपाय है विनिमय लाइसेंसिंग तथा बहु - विनिमय दरें । विनिमय लाइसेंसिंग प्रणाली के अधीन निर्यातकों एवं अन्य विदेशी मुद्रा कमाने वालो को अपनी सारी विदेशो मुद्रा आय मौद्रिक अधिकारियों के पास जमा करनी होती है । मौद्रिक अधिकारी इस विदेशी मुद्रा का आबंटन आयातकों के बीच आयात लाइसेंसो के माध्यम से करते है । बहु - विनिमय दर प्रणाली के अधीन , विलासिता की वस्तुओ के आयात के लिए ऊंची एवं अनिवार्य वस्तुओ के आयात के लिए नीची विनिमय दरें निर्धारित की जाती है ।
https://www.edukaj.in/2020/08/blog-post_12.html
6. विदेशी सहायता - भुगतान शेष की समस्या के निवारण के लिए विदेशो से आर्थिक सहायता लेनी पड़ती है । विदेशी सहायता का बहुत कम अंश रियायती ब्याज दरों में एवं अनुदान के रूप में प्राप्त होता है । अधिकतर सहायता सामान्य ब्याज दरों पर मिलती है ।
7. निर्यात प्रोत्साहन - भुगतान शेष की समस्या के दीर्घकालीन निदान के लिए और अधिक विदेशी मुद्रा कमाना नितांत आवश्यक है । यह तभी संभव है यदि एक प्रभावी निर्यात प्रोत्साहन युक्ति अपनाई जाए ।
- Get link
- Other Apps
Popular Posts
राष्ट्रभाषा , राजभाषा , संपर्कभाषा के रूप में हिंदी भाषा पर विचार कीजिए
- Get link
- Other Apps
स्वतंत्रता की मार्क्सवादी अवधारणा (MARXIST CONCEPT OF FREEDOM)
- Get link
- Other Apps
Comments
Post a Comment
What subject should you further information and answer. Please tell me