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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

व्यायाम / योग के लाभ

व्यायाम / योग के लाभ



भूमिका:- 

         योग का इतिहास बहुत पुराना है। इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारे मी कोई निश्चित जानकारी या प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है को योग भारत कि ही देन है। इतिहासकारों ने इसकी शुरुआत को लेकर भिन्न - भिन्न मत हैं कई इतिहासकार इसकी उत्पति सिंधु घाटी सभ्यता के समय की मानते हैं। क्योंकि उस समय की कई मूर्तियों के आसन योग के विभिन्न आसनों जैसे पाए गए है। योग की प्राचीनता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की विभिन्न वेदों , उपनिषदों , रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थों में भी योग क्रियाओं का वर्णन किया गया है। महर्षि पतंजलि ने लगभग ईसा पूर्व शताब्दी में योग पर एक व्यवस्थित ग्रन्थ " योग शास्त्र " लिखा। प्राचीन कवियों एवं संतो जैसे - कबीर , सूरदास तथा तुलसीदास जी ने भी अपनी - अपनी रचनाओं में योग का वर्णन किया है। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग होने के साथ - साथ योग आज पूरे विश्व में तेजी से प्रचलित है । हर वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस मनाया जाता है। 
         आज की भादौड़ से भरी जिंदगी ने मनुष्य को इतना व्यस्त के दिया है कि वह यह भी भूल गया है कि इस सारी भागदौड़ का वह तभी तक हिस्सेदार है , जब तक उसका शरीर स्वस्थ है। जो व्यक्ति अपने शरीर कि उपेक्षा करता है , समझ लीजिए कि वह अपने लिए रोग , बुढ़ापा और मृत्यु के दरवाजे खोलता है। आज के समय में को भयानक रोग तथा महामारियां दिखाई देती है उनका एक प्रमुख कारण व्यक्ति का अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान न देना भी है। 

आगे हम व्यायाम (योग) का अर्थ व इसका महत्व समझेंगे । 


योग / व्यायाम का अर्थ:- 

' योग ' शब्द संस्कृत भाषा के ' युज ' शब्द से लिया गया है , जिसका अर्थ है - जोड़ना या मिलाना। योग एक सम्पूर्ण जीवन - शैली अथवा साधना है जिससे व्यक्ति को अपने मन , मस्तिष्क तथा स्वयं पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है । मन पर नियंत्रण करके तथा शरीर को स्वस्थ रखकर व्यक्ति परम - आंनद का अनुभव कर सकता है। इस प्रकार यह माना जाता है कि , योग सभी प्रकार के दुख एवं पीड़ा को नष्ट करता है । विभिन्न विद्वानों तथा ग्रन्थों ने योग को निम्न रूप से परिभाषित किया है:-

" योग का अर्थ है मानसिक उतार - चढ़ाव पर नियंत्रण पाना। '"
                                                                     ( पतंजलि )
                                                                   
" योग समाधि है। "                                           ( वेद व्यास)

" इन्द्रियों तथा मन का नियंत्रण योग है। "          (कठोपनिषद)

" योग पीड़ा तथा दुख से मुक्ति का मार्ग है।"।      (भगवदगीता)

" शिव और शक्ति के बारे में ज्ञान ही योग है। "         ( आगम )

" भागवन से व्यक्ति की एकता ही योग है। "                                                                                               (भारती कृष्ण )






योग का महत्व :- 

शरीर को स्वस्थ तथा निरोग रखने में व्यायाम का बहुत महत्व है।

                इस बात ने दो राय नहीं कि आज आधुनिक युग मानसिक दबाव , चिंता तथा तनाव का युग है। आज लगभग हर व्यक्ति किसी - न - किसी कारण से मानसिक परेशानियों से जूझ रहा है। मनुष्य ने जिस भौतिकतावाद पर अंधा विश्वास किया वहीं भौतिकतावाद आज नई समस्याओं का कारण बन चूका है। अपनी असीम भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य दिन रात भागदौड़ के रहा के रहा है। जिसके कारण वह शारीरिक व मानसिक रूप से थकान महसूस करता है। यदि किसी कारणवश यह इच्छाएं पूरी न हो तो मनुष्य तनाव ग्रस्त हो जाता है। सरल शब्दों में कहा जाय तो आज समाज के हर वर्ग का व्यक्ति किसी - न - किसी रूप से तनाव ग्रस्त है। इसी तनाव एवं जीवन - शैली के कारण मनुष्य अक्सर कई प्रकार के शारीरिक , मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं का शिकार हो जाता हैं । ऐसे में योग अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि नियमित योगाभ्यास द्वारा इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।





योग / व्यायाम का संक्षिप्त वर्णन 

1. शारीरिक शुद्धता :- हमारे शरीर में मूल रूप से तीन गुण होते हैं - वात , पित्त तथा कफ । यदि इन तीनों का संतुलन ठीक हो तो , व्यक्ति निरोग रहता है । विभिन्न यौगिक क्रियाओं जैसे :- नेति , धौति , नौलि , कपालभाति आदि नियमित रूप से करने से इन मूल गुणों का संतुलन बना रहता है। जिसके कारण शरीर की आंतरिक सफाई एवं स्वच्छता होती रहती है।

2. रोगों से बचाव व उपचार :- विभिन्न यौगिक व्यायाम , व्यक्ति का अनेक रोगों से केवल बचाव ही नहीं बल्कि उनका उपचार भी करते है। योग द्वारा व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। नियमित रूप से योग करने से विभिन्न बीमारियों जैसे - मधुमेह, ब्रांकाइटिस , गठिया , मूत्र विकार , हृदय रोग , तनाव , पीठ दर्द , मासिक धर्म के विकार तथा उच्च रक्तचाप आदि का उपचार किया का सकता है।

3. शारीरिक सौंदर्य बढ़ाता है :-  प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक रूप से  चुस्त - दुरुस्त दिखना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति का सबसे सस्ता व साधन केवल योग है। यौगिक व्यायाम जैसे - मयूरासन द्वारा चेहरे की दमक बढ़ जाती है और चेहरा पहले को अपेक्षा अधिक सुंदर व कान्तियुक्त हो जाता है।

4. शिथिलता प्रदान करता है :-  किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक कार्य के बाद थकावट होना एक आम बात है। थकावट महसूस होने पर व्यक्ति की कार्यक्षमता तथा उत्पादकता में कमी आती है। ऐसी स्थिति में फिर से तरोताजा तथा स्फूर्ति के लिए शिथिलता प्राप्त करने के अच्छे आसन है , जबकि पद्मासन द्वारा मानसिक थकान दूर होती है।

5. शरीर के आसन को ठीक रखता है :- किसी भी प्रकार का आसन सम्बन्धी दोष होने के कारण व्यक्ति अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकता । उसे प्रत्येक कार्य के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिसके कारण वह जल्दी थकता है । नियमित रूप से वज्रासन , सर्वागासन , मयूरासन , चक्रासन , भुजंगासन व धनुरासन आदि करने से शरीर के आसन को ठीक तथा अनेक आसन सम्बन्धी दोषों को भी ठीक किया जा सकता है।

6. लचक में वृद्धि करता है :- लचक प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। इससे शरीर की गतियां कुशल व गरिमायुक्त हो जाती है। लचक के बढ़ने से चोटो से भी बचाव हो जाता है । विभिन्न योगासन जैसे - चक्रासन , धनुरासन , हलासन , भुजंगासन व शलभासन आदि शरीर कि लचक को बढ़ाने में सहायक होते है। इन आसनों को करने से मांसपेशियां भी लचीली हो जाती हैं। 

7. स्थूलता या मोटापे को कम करता है:-। मोटापे की समस्या आज एक आम समस्या बन चुकी है। मोटा व्यक्ति समाज में अक्सर उपहास का पात्र ही बनता है। मोटापे के कारण ही व्यक्ति अनेक शारीरिक तथा मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाता है। यौगिक व्यायाम जैसे - प्राणायाम व ध्यानात्मक आसन मोटापे को कम करने में सहायक होते है।

8. स्वास्थ्य में सुधार करता है :-  योग शरीर कि सभी संस्थाओं ; जैसे - श्वसन , उत्सर्जन , रक्त प्रवाह , स्नायु व ग्रन्थि संस्थाओं की कार्य - कुशलता को बढ़ाता है , जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में सुधार होता है।

9. मानसिक तनाव को कम करना :-  विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि योग मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है। यौगिक क्रियाएं जैसे - प्रत्याहार , धारणा व ध्यान मानसिक शांति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके अतिरिक्त मकरासन , शवासन , शलभासन व भुजंगासन जैसे यौगिक व्यायाम भी तनाव को कम करने में लाभदायक होते हैं।

10. नैतिक मूल्यों को बढ़ाता है :-  नैतिक मूल्यों का ह्रास आज की सर्वव्यापी समस्या है। यम व नियम जैसी यौगिक क्रियाएं सत्य , अहिंसा , चोरी न करने तथा ब्रह्मचर्य के पथ पर चलकर नैतिक अनुशासन सिखाती है। इस प्रकार के गुण व्यक्ति को अधिक नैतिक व सदाचारी बनाते हैं।

11.  आध्यात्मिक विकास में सहायक :-  नियमित रूप से यौगिक व्यायाम करने से मस्तिष्क पर अच्छा नियंत्रण किया जा सकता है। पद्मासन व सिद्धासन आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अच्छे आसन है। ये आसन ध्यान करने की शक्ति को बढ़ाते है। प्राणायाम भी आध्यात्मिक विकास के लिए लाभदायक होता है।

12. योग आसानीपूर्वक किया जा सकता है :- गैर यौगिक व्यायामों को करने में अधिक समय व धन खर्च होता है , जबकि आधुनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के पास समय कि कमी है। यौगिक व्यायामों को आसानी से कम जगह में बहुत ही कम खर्च पर घर पर भी आसानी से किया जा सकता है ।

         निम्न बिंदुओ के आधार पर हम कह सकते है कि आधुनिक जीवन में मनुष्य यदि नियमित रूप से यौगिक व्यायाम करता रहे, तो वह पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता है तथा एक खुशहाल , संतुष्टिपूर्ण , प्रसन्नतापूर्ण व उपयोगी जीवन व्यतीत कर सकता है।



एक कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन तथा आत्मा का निवास होता है और स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम बहुत आवश्यक है। वैसे तो अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित भोजन , स्वच्छ जल तथा वायु , संयम तथा नियमित निद्रा सभी कुछ जरूरी है , किन्तु इन सब में व्यायाम का अपना विशेष महत्व है। नियमित व्यायाम करने वाले व्यक्ति में एक ऐसी अदभुत शक्ति आ जाती है कि सारे शरीर पर उसका अधिकार हो जाता है। इसी के फलस्वरूप वह व्यक्ति अपने मन की भावनाओ पर भी नियंत्रण रख सकता है । वास्तव में व्यायाम हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन - सामग्री है। स्वस्थ मनुष्य ही शारीरिक और मानसिक सभी कार्य सुगमता से कर सकता है। जो बीमार रहता है वह न तो कोई शारीरिक श्रम का कार्य कर सकता है और न ही कोई बौद्धिक कार्य। इसके लिए आवश्यक है कि सभी को व्यायाम के लिए थोड़ा - सा समय अवश्य निकालना चाहिए। यदि शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन भी प्रसन्न रहेगा और हम हर काम आंनद और स्फूर्ति से कर सकेंगें। 
              व्यायाम के अतंर्गत अनेक प्रकार के क्रियाकलाप शामिल होते है। सबसे प्रमुख कार्य है प्रातः काल जल्दी उठकर घूमने जाना। प्रातः काल घूमने से एक ओर तो हमारे प्राणों में स्वच्छ वायु का संचार होता है, दूसरी ओर शरीर के सभी स्नायुओं को नया रक्त और प्राण प्राप्त होते है। इसके अलावा लोग तरह - तरह की कसरते भी कर सकते है। जो लोग किन्हीं कारणों से प्रातः  घूमने नहीं जा सकते वे अपने घर पर ही कसरत के सकते है । तरह तरह के खेल व्यायाम के है अन्तर्गत आते है। छात्र - छात्राएं हॉकी , फुटबॉल , क्रिकेट , बास्केटबॉल , टेनिस आदि सभी खेलो में सक्रिय रूप से भाग लेकर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते है। खेलो से न केवल व्यायाम होता है अपितु ये मनोरंजन के भी सशक्त साधन है। कसरत , आसन या किसी भी प्रकार के व्यायाम के बाद शरीर पर तेल मालिश भी अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है । तेल मालिश से एक हमारे स्नायु - तंत्र में खींचाव पैदा होता है तो दूसरी ओर त्वचा में भी चमक आ जाती है और रक्त - प्रवाह ठीक रहता है।
              व्यायाम के बाद शरीर को ठंडा करने के लिए थोड़ा विश्राम अवश्य करना चाहिए। इसके बाद स्नान करना अति आवश्यक है। स्वच्छ ठन्डे पानी से रगड़कर शरीर को साफ करने से शरीर की त्वचा के सभी रंध्र खुल जाते है।


              आजकल बड़े - बड़े नगरों, महानगरों में जगह - जगह सरकारी तथा व्यक्तिगत ' जिम ' खुल गए है। यहां विभिन्न प्रकार के उपकरणों तथा यंत्रों कि मदद से व्यायाम करवाया जाता है। जो लोग किसी कारण से स्वयं व्यायाम का समय नहीं निकाल पाते उनके लिए ये भी बड़े उपयोगी है। कहने का तात्पर्य इतना ही है कि नियमित व्यायाम अच्छे स्वास्थ्य के लिए रामबाण औषधि है। अतः हमें आलस को त्यागकर प्रतिदिन व्यायाम के लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए।
                
            

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