google-site-verification=V7DUfmptFdKQ7u3NX46Pf1mdZXw3czed11LESXXzpyo भारतीय किसान , भारतीय किसान की दशा ,भारतीय किसान: देश की रीढ़ Skip to main content

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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

भारतीय किसान , भारतीय किसान की दशा ,भारतीय किसान: देश की रीढ़

 भारतीय किसान 


कृषक का स्वभाव एवं श्रम 


भारत गांवों का देश है । भारत का ह्रदय गांवों में ही बसता है । गांवो में ही परिश्रम और सेवा के अवतार किसान बसते हैं, जो नगरवासियों के अन्नदाता ही नहीं सृष्टि के पालक हैं । भारतीय किसान ' कठोर परिश्रम ' , सरल ह्रदय , त्याग और तपस्वी जीवन , सादगी , जैसे गुणों  का पर्याय है । कड़कड़ाती सर्दी , चिलचिलाती धूप , घनघोर वर्षा , हाड़ कपा देने वाली सर्दी में भी वह एक तपस्वी की भांति अपनी साधना में लीन रहता है । वह हर विपत्ति को चुपचाप सहन कर लेता है , अभावों में जीने की उसे आदत है , रूखा - सुखा खाकर वह अपना पेट भर लेता है , मोटा कपड़ा पहनकर वह अपना तन ढंक लेता है । अपने इस कठोर जीवन की वह न तो कभी किसी से शिकायत करता है  तथा न ही स्वंय के लिए ऐश्वर्य एवं भोग - विलास की सामग्री की मांग । उसके जीवन का तो बस एक ही उद्देश्य है - मिट्टी से सेना उत्पन्न करना और अन्नपूर्णा की तरह दूसरो का पेट भरना ।


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एक बार नारद ने भगवान विष्णु से पूछा , " हे प्रभु! अपका परम भक्त कौन है ? " विष्णु ने उत्तर दिया , " मेरा परम भक्त एक किसान है ।" नारद ने इस परम भक्त के दर्शन करने का निश्चय किया । विष्णु जी ने   उनसे  कहा कि उस परम भक्त के दर्शन करने जाते समय तुम्हे तेल से भरा एक पात्र अपने साथ ले जाना होगा । पर ध्यान रहे उस पात्र से एक बूंद तेल भी पृथ्वी पर नही गिरना चाहिए । नारद ने ऐसा ही किया । वे किसान के पास पहुंचे उन्होंने किसान की दिनचर्या को देखा । किसान ने प्रातः काल खेत पर काम करने के लिए जाते समय ' राम - राम ' शब्द का उच्चारण किया और एक बार वहां से आने के बाद । नारद को भगवान विष्णु की बात पर बहुत आश्चर्य हुआ , क्योंकि किसान तो पूजा - पाठ भी नही करता था । खैर वे अपना तेल से भरा पात्र लेकर विष्णु जी के पास लौट आए और तेल का पात्र उनके हाथ में देते हुए बोले , " भगवान ! आपकी आज्ञा के अनुसार मैने इस पात्र में से एक भी बूंद नीचे नही गिरने दी । आपके परम भक्त किसान के दर्शन भी मैने किए , पर उसने तो आपका नाम केवल दो बार ही लिया । आपके अनेक भक्त तो दिन रात स्मरण करते है , फिर यह किसान आपका परम भक्त कैसे हो गया ? " विष्णु बोले , " वत्स ! तुमने मार्ग में मेरा नाम कितनी बार लिया ? " " एक बार भी नही " नारद ने बताया " मेरा ध्यान तो तेल के पात्र पर लगा हुआ था ।" विष्णु जी ने समझाया , " तुमने शायद किसान के जीवन को नहीं देखा । वह दिन रात कितना परिश्रम करता है । इतनी व्यस्त दिनचर्या होने पर भी उसने मेरे नाम का दो बार स्मरण किया , इसीलिए वह मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं ।"

भारतीय किसान की महानता का इससे बढ़कर क्या बखान किया जा सकता है । भारतीय किसान में हम विष्णु के दर्शन करते हैं । विष्णु भी संसार का पालन करते हैं और किसान भी । न उसमे सुख की लालसा है , न ऐश्वर्य की कामना । वह तो कर्मयोगी की तरह अपने कर्तव्य की पूर्ति में लगा रहता है ।


पिछड़ेपन के कारण


स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे नगरों का तो मानचित्र ही बदल गया है , पर भारत के अधिकांश गांवों में आधुनिकता की लहर अभी नहीं आई है । इन गावों के किसान पहले भी फटेहाल थे और आज भी फटेहाल हैं । नगरों का वैभव उसे आकृष्ट नही करता , कृषि ही उसका सब कुछ है ।


भारतीय किसान अत्यंत सरल हृदय तो है ही , अपनी दुर्दर्शा के लिए किसी हद तक स्वंय भी जिम्मेदार है। बिश्वी सदी में आज भी वह भाग्यवादी  है , अंधविश्वासों से घिरा है तथा परंपरावादी दृष्टिकोण का दामन थामे है । परिवार नियोजन के महत्व को वह नहीं मानता , अनेक सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों पर अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करके जीवन पर कर्ज़ के बोझ से दबा रहता है , अनेक प्रकार के झगड़ो में उलझने के कारण मुकदमेबाजी उसका पीछा नहीं छोड़ती । इन सभी कारणों से भारतीय किसान जीवन के अभावों से मुक्त नहीं हो पाया है ।


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सरकारी प्रयास 


हर्ष का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार  तथा राज्य सरकारों ने किसान के जीवन - स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कई कदम उठाए हैं । गांवों में शिक्षा का प्रचार प्रसार किया गया है । गांवों में खेती के नए उपकरण , बीज तथा उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है । खेती की नई - नई तकनीक सिखाई जा रही है , गांवो में सहकारी समितियों और बैंको के माध्यम से कम ब्याज दर पर ऋण दिलवाकर कृषक को महाजन के चंगुल से छुड़ाया जा रहा है , किसान की फसल को सरकार उचित मूल्य पर खरीद रही है , खेती की उपज बढ़ाने के लिए अनेक उपाय भी किए गए है , जिनसे किसानों की दशा में सुधार आने लगा है।


फिर भी अभी बहुत कुछ करना शेष है , क्योंकि सरकारी सुविधाओं का लाभ केवल बड़े किसानों तक ही पहुंच पाया है । सरकार से आशा है कि वह छोटे तथा निर्धन कृषकों के जीवन स्तर में सुधार लाने की दशा में गंभीरता से प्रयास करें , क्योंकि किसान की समृद्धि में ही भारत की समृद्धि है।





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