google-site-verification=V7DUfmptFdKQ7u3NX46Pf1mdZXw3czed11LESXXzpyo ध्वनि (शोर) प्रदूषण क्या है? ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव । Skip to main content

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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

ध्वनि (शोर) प्रदूषण क्या है? ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव ।


ध्वनि (शोर) प्रदूषण के स्रोत एवं दैनिक जीवन में इसके

प्रभावों का वर्णन कीजिये तथा इसकी रोकथाम अन्यथा नियंत्रण के उपाय बताइये। Describe the Sources of Noise Pollution and effects on daily life. Suggest the ways to control or check the Noise Pollution.




ध्वनि (शोर) प्रदूषण के निम्नलिखित दो स्रोत हैं 


(1) प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)- इसके अंतर्गत बादलों की गड़गड़ाहट प्रमुख हैं। 


(2) मानव निर्मित स्रोत (Man Made Sources)- इस तरह का ध्वनि प्रदूषण प्राय: शहरों में अनेक वाहनों (ट्रक, मोटर, बस, स्कूटर, फायर इन्जन, रेलगाड़ी आदि) के हार्न, सायरन, कारखानों, टेलीविजन, रेडियो, ट्रांजिस्टर, लाउडस्पीकर एवं कुत्तों के भौंकने से उत्पन्न होता है। इस तरह का ध्वनि प्रदूषण प्रति 10 वर्षों में दो गुना होता जा रहा है।



ध्वनि (शोर) प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Noise Pollution)- हम अपने दैनिक जीवन में शोर प्रदूषण के प्रभावों का अनुभव करते हैं। जैसे-जैसे नगरों,महानगरों में शोर बढ़ता गया इस ओर वैज्ञानिकों ने अनेक अनुसंधान किये तथा अपने परिणाम प्रस्तुत किये। इन परिणामों से हमें ज्ञात होता है कि शोर हमारे स्वास्थ्य, हृदय, स्नायु तंत्र आदि पर बहुत हानिकारक प्रभाव डालते हैं। कल-कारखानों की मशीनों पर काम करने वाले कर्मचारी बहरेपन के शिकार तो होते ही हैं उन्हें अन्य रोग भी हो जाते हैं। शोर की सीमा 70 डेसीबल के ऊपर होने पर त्वचा में अचानक उत्तेजना उत्पन्न होती है, जठर की पेशिया संकीर्ण हो जाती है तथा मनुष्य के स्वाभाव में उत्तेजना और क्रोध उत्पन्न हो जाता है। प्रयोगों द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि लगातार एक ही स्तर पर बने रहने वाले शोर की तुलना में बदलती हुई तीव्रताओं वाला शोर अधिक हानिकारक होता है। शोर प्रदूषण से होने वाली कुछ हानियों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है



1. मानसिक तनाव एवं अनिद्रा -शोर के कारण मनुष्य मानसिक तनावग्रस्त हो जाता है। उसे नींद कम या बिल्कुल नहीं आती। इसके फलस्वरूप मनुष्य को मानसिक तनाव एवं मानसिक विक्षेप जैसे रोग हो जाते हैं। इन रोगों के फलस्वरूप मनुष्य अधिक उग्र तथा हिंसात्मक प्रवृत्ति का हो जाता है। मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए वह मदिरा पान करता है, नींद की गोलियां खाता है, नशीली औषधि यों का सेवन करता है जो कि उसके लिए और भी हानिकारक है। इस प्रकार मुनष्य : अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता है।


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2. बहरापन ( श्रवण दोष)- अनेक अनुसंधान एवं परीक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि 85 डेसीबेल से उच्च ध्वनि काफी समय तक सुनते रहने से मनुष्य बहरा हो सकता है। 90 डेसीबल से उच्च आवृत्ति की ध्वनि कान के आंतरिक भाग को क्षति पहुंचाती है तथा 120 डेसीबल की ध्वनि (शोर) कष्टदायक होती है। यदि कोई मनुष्य 140 डेसीबेल की ध्वनि कुछ मिनटों तक 150 डेसीबेल की ध्वनि कुछ सैकण्डों के लिए सुनता है, तो वह अत्यधिक पीड़ा एवं अस्थायी बहरापन महसूस करता है। उच्च तीव्रता का शोर लगातार सुनने से स्थायी बहराबपन हो जाता है तथा कार्यक्षमता कम हो जाती है।


3. केन्द्रीय तंत्रिका संस्थान पर प्रभाव-शोर केंद्रीय तंत्रिका संस्थान को प्रभावित करना है इससे पौष्टिक अल्सर तथा दमा, जैसे रोगों की तकलीफ में तकलीफ में वृद्धि होती है तीव्र ध्वनि के कारण उत्पन्न मानसिक तनाव का सीधा प्रभाव तंत्रिका संस्थान पर पड़ता है। तंत्रिका संस्थान ही मनुष्य की विभिन्न क्रियाओं पर नियंत्रण रखता है। रक्त वाहिनियों के आंकुचल-प्रसारण को प्रभावित करके अनेक रोग उत्पन्न करता है जिसमें उच्च रक्तचाप मुख्य है। 120 डेसीबेल का शोर मस्तिष्क एवं नर्वसेल (न्यूरॉन) के लिये घातक हो सकता है। इससे मनुष्य की स्मृति भी घट सकती है।


4. हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप-प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि शोर के कारण हृदय का क्रिया-कलाप प्रभावित होता है जिसके फलस्वरूप हृदय सामान्य स्थिति की तुलना में परिवहन तंत्र में कम मात्रा में रक्त संचार करता है अतः शरीर में रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है जिसके फलस्वरूप रक्त में कम मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त होती है। इन प्रभावों के कारण मनुष्य अधिक थकान अनुभव करता है। उसके रक्त वाहनियों का आकुचन होता है तथा प्यास अधिक लगती है। 90-100 डेसीबेल की ध्वनि पर हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, ऐडिनिल हारमोन अधिक मात्रा में बनने लगता है एवं रक्त में कोलस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। 

शोर के कारण शारीरिक प्रतिक्रियाओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है इससे उच्च रक्तचाप बढ़ जाता है तथा चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो जाता है।


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5. अंतःस्रावी ग्रंथियों पर प्रभाव-शोर मनुष्य के अंतःस्रावी ग्रंथियों को भी प्रभावित करता है। इसके कारण विभिन्न हारमानों का स्रावन अनियमित होने लगता है जिसका प्रभाव मनुष्य के शरीर के भीतरी कार्यों पर पड़ता है तथा शरीर के भीतर असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। कुछ समय पश्चात् मनुष्य मानसिक तनावों से घिर जाता है तथा उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है एवं दिल का दौरा पड़ सकता है।


शोर के कारण मनुष्य की कार्यक्षमता घट जाती है। इसी संदर्भ में ऋषिकेश स्थित एन्टिबायोटिक कारखानों में रुचिकर प्रयोग किया गया। इस प्रयोग में कारखाने के प्रत्येक विभाग में मन्द-मन्द मधुर ध्वनि का प्रसारण किया गया इससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता से पर्याप्त सुधार हुआ।





ध्वनि प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय (Remedies to Remove of to Check Noise Pollution)-ध्वनि (शोर) प्रदूषण पर नियन्त्रण के निम्न उपाय है।


 (i) स्रोत पर शोर का नियंत्रण -यह ध्वनि प्रदूषण रोकने का अच्छा उपाय है परंतु इसे लागू करने से पूर्व संबंधित इंजन का ज्ञान इंजन की संरचना डिजाइन प्रक्रिया आदि का ज्ञान आवश्यक है। बढ़ते हुए ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिये साइलेंसर विकसित हो गये हैं। उद्योगों, मोटर वाहनों आदि में साइलेंसरों का प्रयोग कर शोर कम किया जा सकता है। उद्योगों की मशीनों के साथ ध्वनि शोषक पदार्थों का उपयोग किया जाना आवश्यक है। ध्वनि स्तर कम करने के लिए अनेक प्रकार के पदार्थ जैसे राख के सांचें, शीशा, ईंटें, प्लास्टर आदि उपयोग में लाये जा सकते हैं। ये पदार्थ ध्वनि संचरण को कम कर देते हैं। राख का सांचा अगर 10 सेंटीमीटर मोटा है, तो यह 45 डेसीबेल, 10 सेंटीमीटर तक मोटी ईंट की दीवार 45 डेसीबल लगभग तक ध्वनि को कम कर सकते हैं।


(ii) माध्यम पर शोर नियंत्रण-अगर ध्वनि संचरण का माध्यम तोड़ दिया जाये, तो शोर नियंत्रित किया जा सकता है। इसे निम्न विधियों द्वारा किया जा सकता है -


(a) भवन विन्यास परिवर्तन करके (Changing in Building Layout) ध्वनि स्रोत एवं माध्यम को ध्यान में रखते हुए भवन का एक कमरा ऐसे स्थान पर बनाया जाये जो ध्वनि को बाहर जाने से व फैलने से रोके। साथ ही साथ ध्वनि स्थाई स्रोत से भवन की तरफ निरंतर आती है, तो मकान का स्टोर तथा सोपान कक्ष ध्वनि स्रोत की तरफ ही बनाये जायें ताकि ये संरचना भवन के अंदर आने वाले शोर का माध्यम तोड़कर शोर की कम मात्रा ही भवन के अंदर जाने दें।


(b) अवशोषण-इस तकनीक में शोर पैदा करने वाली मशीनें एक कमरे में रखकर, उस कमरे की दीवारें, फर्श तथा छत ध्वनि सोखने वाले पदार्थों की बनायी जाती है। ये पदार्थ ध्वनि अवशोषित कर लेते हैं तथा बाहर कार्य कर रहे श्रमिकों को शोर से कोई व्यवधान नहीं होता है। कुछ ध्वनिरोधक कालीनें भी फर्श, छत पर दीवारों पर बिछाई जा सकती हैं।



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(c) स्थिति निर्धारण-इस तकनीक में स्रोत तथा रिसीवर (ध्वनि प्राप्तकर्ता) बीच की दूरी बढ़ा दी जाती है, चूंकि ध्वनि स्रोत सभी दिशाओं समान रूप से ऊर्जा का विकिरण नहीं करते हैं। अतः स्रोत व प्राप्तकर्ता के सापेक्ष स्थिति निर्धारण का प्राविधान रखा जाना आवश्यक है।


(d) मफलरों का प्रयोग करके (Use of Mufflers) यदि ध्वनि स्रोतों को ऊनी मफलरों से ढ़क दिया जाये, तो ध्वनि का संचरण काफी मात्रा में रुक सकता हैं। अतः श्रमिकों को ऐसी जगह मफलर ओढ़ने की हिदायत दी जाती है।


(iii) प्राप्तकर्त्ता पर ध्वनि नियंत्रण (Control of Noise at Receiver) किसी हद तक प्राप्तकर्त्ता चाहे, तो स्वयं ध्वनि नियंत्रण कर सकता है। यह प्रभाव निम्नलिखित उपायों से कम किया जा सकता है


(a) ध्वनि अवधि में अधिक समय न रहना- भिन्न-भिन्न ध्वनि तर भिन्न-भिन्न प्रभाव होते हैं, लेकिन ध्वनि स्तर बढ़ने पर यदि उसकी अवधि का समय के लिये कर दी जाये तो ध्वनि प्रदूषण से मानव अपने को अलग रख सकता है।


(b) लोगों को शिक्षित करके बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों, जैसे बबई, कलकना, दिल्ली, मद्रास, कानपुर आदि जहां ध्वनि प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर है वहां पर रेडियो, टी.वी. अखबार आदि के माध्यम से शोर रोकने एवं कम उत्पन्न करने जागरूक करें।


(c) व्यक्तिगत रक्षा यंत्रों का उपयोग करके कान में लगाये जाने वाले प्लग,मफलर, ध्वनिरोधी हेलमेट तथा रूई आदि प्रयोग कर शोर को कम किया जा सकता है।


इस दिशा में निम्न कार्य किये जा सकते हैं।


 (i) नगर पालिका एवं महापालिका को ये आदेश दिया जाये कि वे भारी ट्रकों एवं वाहनों को आवासीय क्षेत्रों में से होकर न गुजरने दें। 


(ii) रेलवे लाइनें, राजमार्ग तथा अन्य सड़कें आवासीय एवं व्यापारिक क्षेत्रों से दूर बनाई जायें। यदि आवश्यक हो, तो इन्हें लिंक रोड से जोड़ा जाये।


 (iii) नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग, प्रत्येक नगर में एक "मॉनीटर स्टेशन' स्थापित करें, जो ध्वनि के आंकड़े प्रतिदिन नोट करता रहे तथा ध्वनि उच्च होने पर उसे रोकने का प्रयास करें।



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(iv) भवन के सामने वृक्ष एवं झाड़ियां अवश्य लगाने का प्राविधान किया जाना चाहिए।


(v) भवन में शौचालय, स्टोर, सीढ़ी कक्ष व स्नानागार अधिक ध्वनि वाले चाहिये। हिस्से की तरफ बनाये जायें।


(vi) सरकार को शोर प्रदूषण नियंत्रण एक्ट (NOISE POLLUTION CONTROL ACT) बनाना चाहिये तथा प्रत्येक नगर की ध्वनि नियंत्रण आचार संहिता होनी चाहिए। अनावश्यक एवं गैरकानूनी ध्वनि को दंडनीय अपराधा किया जाये।


(vii) यदि नवीन हवाई अड्डा बनाना हो, तो उसे नगर से पर्याप्त दूर बनाना चाहिये तथा आबादी युक्त क्षेत्रों से विमानों का उड़ना तथा उतरना बचाया जाना चाहिये।


(viii) सड़कों एवं रेलवे ट्रैकों के साथ लाइनों में दोनों तरफ वृक्ष (घनी पत्तियों वाले) लगाये जाने का प्राविधान करना चाहिए।



उद्योगों से ध्वनि नियंत्रण (Noise Control from Industry) उद्योगों से उत्पन्न होने वाली कारीगरों एवं मनुष्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अतः इसे नियंत्रित करना आवश्यक है। उसका नियंत्रण निम्न सुझावों को अपनाकर किया जा सकता है।


1. नियोजक व पर्यावरण प्राधिकरण के बीच आपसी सहयोग से (Co operation between Planners and Environmental Authorities)-प्रत्येक शहर में पर्यावरण प्राधिकरण स्थापित है, जिसमें Ecology व Allied Science के Experts होते हैं। इन Experts व नगर नियोजक के बीच अच्छा सहयोग हो, तो ध्वनि की सीमा को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। जब भी शहर का विकास नियोजक को करना हो तो उसके द्वारा विकसित योजनाओं को लागू करने से पूर्व पर्यावरण प्राधिकरण से अनुमोदन करा लेना चाहिये, क्योंकि नियोजक रेलवे लाइनों व ठोस अवशेषों के निपटारों के लिये स्थानों, आदि की स्थितियों, शहर के क्षेत्र में निश्चित करेगा, ताकि शहर का Out Plan बढ़िया हो, परंतु पर्यावरण प्राधि करण, पर्यावरण को स्वच्छ रखने की दृष्टि से इनकी स्थितियों में थोड़ा, इधर-उध र परिवर्तन कर सही स्थिति का अनुमोदन करेगा।



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2. ध्वनि रोधन अभिकल्पनं (Acoustic Design Criteria)-उद्योगों में ध्वनि को नियंत्रित करने के लिये ध्वनिरोधक अभिकल्पन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।


उद्योगों में प्रबंधकों व अन्य अधिकारियों के कक्षों को खोखली दीवार से बनाना चाहिये। खिड़कियों व दरवाजों की दरारों से निकलकर आने वाले ध्वनि को कम करने के लिये दरारों को बहुत ही कम चौड़ा या बिल्कुल बंद होना चाहिये। फर्श रबर का P.V.C का या लिनोलियम शीट का होना चाहिये। कक्षों में अच्छी ध्वनिरोधी सामग्री का प्रयोग करना चाहिये। यह सामग्री रेशेदार व सरंध्रयुक्त होनी चाहिए। Glass Wool से 80 % तक Air Born Sound Energy को रोका जा सकता है।


3. ध्वनि युक्त क्षेत्र व ध्वनि को कम करने के क्षेत्र (Noise Free Zones & Noise Abatment Zones)- ध्वनि को सरल व आसानी से नियंत्रित करने के लिये ध्वनि युक्त क्षेत्र बनाने चाहिये इन क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। ऐसे क्षेत्रों में किसी प्रकार ध्वनि जो चाहे ट्रैफिक, निर्माण कार्य, लाउडस्पीकर या मनोरंजन के लिये भीड़ से उत्पन्न हो, को रोकना चाहिये ऐसे क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या पूजा स्थलों को बनाया जाना चाहिये।

जिन क्षेत्रों में अत्यधिक शोर होता है, वहां ध्वनि में कमी लाने के उपाय करने चाहिये तथा ऐसे क्षेत्रों का आकार धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिये। माध्यम में ध्वनि दो रूपों में होती है

 (a) एयर बोर्न (Air Born)- ऐसी ध्वनि हवा में होती है। यही ध्वनि का मुख्य रूप है। 

(b) इम्पेक्ट नायज (Impact Noise)- यह ध्वनि Material पर खुरचने या चलने से होती है। इस ध्वनि को कम करने के लिये ध्वनि रोधक सामग्री की पत दी जाती है।



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