google-site-verification=V7DUfmptFdKQ7u3NX46Pf1mdZXw3czed11LESXXzpyo स्वतंत्रता की अवधारणा (THE CONCEPT OF LIBERTY) Skip to main content

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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

स्वतंत्रता की अवधारणा (THE CONCEPT OF LIBERTY)

 स्वतंत्रता की अवधारणा (THE CONCEPT OF LIBERTY)


https://www.edukaj.in/2023/02/astronomers-succeeded-by-discovering-12.html



हर युग का इतिहास 'स्वतंत्रता' और राजसत्ता' के बीच संघर्ष का इतिहास रहा है। स्वतंत्रता के नाम पर जहाँ बड़े से बड़ा बलिदान किया गया है, वहीं उसकी आड़ में बहुत सी बुराइयों को भी बढ़ावा मिला है। 'स्वतंत्रता' के आदर्श से प्रेरित होकर मानव जाति आरंभ से ही संघर्ष करती आ रही है। यह संघर्ष सदा नए-नए रूपों में प्रकट होता आया है। 17वीं और 18वीं शताब्दी में स्वतंत्रता का अर्थ केवल "राजाओं के अत्याचार से छुटकारा" समझा जाता था; परंतु उसके बाद राजनीतिक विचारों में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। स्वतंत्रता की भावना ने 'लोकतंत्रीय शासन को बढ़ावा दिया। कुछ समय बाद यह कहा जाने लगा कि 'स्वतंत्रता' की अनुभूति के लिए 'समानता' भी जरूरी है।


https://www.edukaj.in/2023/01/today-we-will-know-who-is-first.html


 लोकतंत्र और समाजवाद, ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं।



https://www.edukaj.in/2022/05/periar-on-identity-in-hindi.html



स्वतंत्रता का अर्थ स्वतंत्रता के दो दृष्टिकोण


(THE MEANING OF LIBERTY: TWO VIEWS OF LIBERTY)


स्वतंत्रता को अंग्रेजी में 'लिबर्टी' (liberty) कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द 'लिबर' (liber) से हुई। 'लिबर' का अर्थ है-मुक्ति अर्थात् 'बंधनों का अभाव' (absence of restraints)। इसका अभिप्राय यह हुआ कि लोगों को "इच्छानुसार कार्य करने की आजादी" है। वास्तव में, 'स्वतंत्रता' की यह परिभाषा बहुत भ्रमपूर्ण है। स्वतंत्रता का अर्थ यदि यह लिया जाए कि "हर बंधन एक बुराई है" (every restraint is an evil) तो स्वतंत्रता 'स्वेच्छाचार' (licence) का ही दूसरा नाम बन जाएगी। किसी भी सभ्य समाज में मनुष्य को सदा मनचाहा कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। मनुष्य को अपनी स्वतंत्रता के साथ दूसरों के अधिकारों का भी ध्यान रखना पड़ता है। लास्की के अनुसार, "स्वतंत्रता यत्नपूर्वक एक ऐसे वातावरण को बनाये रखने का नाम है जिसमें व्यक्ति को अपने अधिकतम विकास का सुअवसर प्राप्त हो सके।"


https://www.edukaj.in/2023/06/what-is-right-in-indian-constitution-or.html



स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार क्या है? 

अवश्य पढ़े:-

https://www.edukaj.in/2022/05/various-forms-of-liberty.html






स्वतंत्रता का नकारात्मक सिद्धांत (Negative Concept of Liberty))


कई विद्वानों का कहना है कि मनुष्य के कार्यों पर कम-से-कम प्रतिबंध होने चाहिएँ। इन विद्वानों में जॉन लॉक (Joh Locke), एडम स्मिथ (Adam Smith) तथा हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) के नाम उल्लेखनीय है। लॉक के अनुसा “जीवन, स्वतंत्रता व संपत्ति के अधिकार मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार हैं। विधानमंडल या कार्यपालिका को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह मनुष्य की इन स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगाए।" लॉक की कृति 'टू ट्रीटाइजेज ऑन सिविल गवर्नमेंट' (Two Treatises on Civil Government) आज भी व्यक्तिवाद की बाइबिल मानी जाती है। लॉक के अनुसार तो सरकार 'जनता के नौकर' के समान है, जो तभी तक पदासीन रह सकती है जब तक वह जनता को स्वीकार हो। उसे कुछ सीमित शक्तियाँ इस उद्देश्य से प्रदान की गई है कि व्यक्ति के अधिकार सुरक्षित रह सकें। लॉक अपनी पुस्तक में 'संप्रभु' (Sovereign) शब्द का कहीं प्रयोग नहीं करता। आदि से अंत तक उसे तो व्यक्ति की स्वतंत्रता की ही चिंता थी। लॉक ने यद्यपि तीन प्रमुख अधिकारों (जीवन, स्वतंत्रता व संपत्ति के अधिकारों) की चर्चा की, पर उसके अनुसार संपत्ति का अधिकार ही सबसे प्रमुख और श्रेष्ठ है। इसके बाद दूसरी प्रमुख स्वतंत्रता है-'धार्मिक सहिष्णुता' (religious toleration)। हर व्यक्ति को स्वतंत्रता होनी चाहिए कि अपने विश्वास के अनुसार किसी भी मजहब का पालन कर सके। राजनीतिक क्षेत्र में उसने संवैधानिक सरकार का समर्थन किया और व्यक्तिगत क्षेत्र में 'धार्मिक स्वतंत्रता' पर विशेष बल दिया।



https://www.edukaj.in/2022/12/sustainable-human-development-issues.html




एडम स्मिथ (Adam Smith) ने आर्थिक क्षेत्र में अबंध नीति' (laissez faire) यानी अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन किया। उसके अनुसार राज्य यदि आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप न करे तो समाज के आर्थिक कार्य व्यापार अपने आप ठीक-ठीक चलते रहेंगे। दूसरे शब्दों में, एडम स्मिथ उत्पादन के साधनों-भूमि, श्रम व पूँजी पर सरकार के नियंत्रण को स्वीकार नहीं करता ।


हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) ने भी व्यक्तिवाद का ही समर्थन किया। उसने प्राकृतिक जगत् के सिद्धांत "योग्यतम की जीविता" (survival of the fittest) का हवाला देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि जीवन के इस संघर्ष में सिर्फ योग्यतम ही जीवित रह सकते हैं। पूर्ण स्वतंत्रता की दशा (social static) एक ऐसे संतुलन (equilibrium) का नाम है जिसमें किसी सरकार की आवश्यकता नहीं रहती। पर मनुष्य शायद इस स्थिति में कभी पहुँच नहीं पायेगा। जब तक आदर्श अवस्था नहीं आती तब तक सरकार का होना आवश्यक है। परंतु स्पेंसर का कहना था कि राज्य का कार्यक्षेत्र बड़ा संकुचित है। वह सिर्फ एक पुलिसमैन की तरह कार्य कर सकता है, इससे अधिक और कुछ नहीं। राज्य के केवल दो कार्य हैं- आंतरिक व्यवस्था बनाए रखना और बाह्य आक्रमणों से देश की सुरक्षा वह लिखता है कि राज्य 'परस्पर रक्षार्थ बनाई गई कंपनी' (joint stock protection company) है। राज्य उपरोक्त दो कार्य करे और अन्य सभी क्षेत्रों में व्यक्ति को पूर्णतया स्वतंत्र छोड़ दें।


जॉन स्टूअर्ट मिल (John Stuart Mill) भी मूलतः व्यक्तिवादी था। वह यह मानता है कि व्यक्ति सुख चाहता है और इसी को पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है। मिल का विश्वास था कि सामाजिक व राजनीतिक प्रगति के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता आवश्यक है, पर स्वतंत्रता का आशय 'स्वेच्छाचार' या स्वच्छंदता (licence) से नहीं है। जे. एस. मिल के मतानुसार व्यक्ति के कार्य दो प्रकार के होते हैं-एक, वे जिनका प्रभाव केवल कर्ता तक ही सीमित रहता है, और दूसरे, वे जिनका समाज के अन्य लोगों पर भी प्रभाव पड़ता है ('self-regarding' and 'other-regarding' actions)। जिन कार्यों का अन्यों पर प्रभाव पड़ता है, उनके विषय में व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित कार्यों से अन्य लोगों की स्वतंत्रता में बाधा पड़ती है-अश्लील हरकतें, शराब पीकर अनाप-शनाप बकना तथा चोरी करना। इसलिए इन कार्यों पर अवश्य ही रोक लगाई जाए। परंतु कुछ अन्य कार्यों के संबंध में मनुष्य को पूर्णतया स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए। एक व्यक्ति क्या खाता-पीता है, वह क्या पढ़ता है, क्या बोलता है, किस धर्म को मानता है, कहाँ रहता है तथा कौन-सा कारोबार करता है, ये उसकी निजी बातें हैं। इसलिए राज्य की ओर से उनमें कोई बाधा या रोकथाम नहीं होनी चाहिए। जे. एस. मिल (J.S. Mill) के शब्दों में, “प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व, शरीर और मस्तिष्क का पूर्ण स्वामी है।


https://www.edukaj.in/2022/03/what-is-fitness.html



नकारात्मक स्वतंत्रता के नये समकालीन समर्थक (Contemporary Exponents of Negative Liberty)–नये दक्षिणपंथी विचारकों (Thinkers of the New Right) ने राज्य व समाज के आपसी रिश्तों का विस्तार से विश्लेषण किया है। आइजिया बर्लिन, मिल्टन फ्रीडमैन, फ्रेडरिक हेयक और रॉबर्ट नाजिक ने 'अहस्तक्षेप नीति' को उचित ठहराने के लिए फिर से वे सारी दलीलें पेश की, जो किसी समय एडम स्मिथ या हरबर्ट स्पेसर द्वारा पेश की गई थी। इन विद्वानों के अनुसार, व्यक्ति स्वयं इस बात को सबसे अच्छा समझता है कि उसे क्या चाहिए। इसलिए सरकार का हस्तक्षेप जितना कम होगा, व्यक्ति अपने जीवन लक्ष्यों को साधने में उतना ज्यादा सक्षम बनेगा। इन विद्वानों की विचारधारा को यदि तीन सूक्तियों में बाँधने को कहा जाए तो ये सूक्तियां होंगी ;


(1) व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मप्रेरणा से काम करना (individual freedom and initiative); 


(ii) अहस्तक्षेप नीति अथवा मुक्त बाजार (laissez-faire or free market); तथा


 (iii) एक ऐसा राज्य जो न्यूनतम कार्य करे (minimal state)। राज्य का काम नागरिकों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना नहीं है। दूसरे शब्दों में, उसका यह काम नहीं कि वह बेरोजगारों की मदद करे अथवा अशिक्षा, स्वास्थ्य व आवास की सुविधाएँ उपलब्ध कराए। उसका कार्य तो सिर्फ ऐसे कायदे-कानून बनाना है जो लोगों की जान, मात और स्वतंत्रता' (life, estate and liberty) की रक्षा करें। हेयक (Hayek) ने एक ऐसे राज्य की कल्पना की जिसे हम 'अतिव्यक्तिवादी राज्य' (ultra-individualistic state) कह सकते हैं। अतिव्यक्तिवादी इसलिए चूँकि राज्य के कुछ गिने-चुने कार्य हैं, जैसे कि कानून और व्यवस्था की रक्षा करना, विवादों को सुलझाना, आपसी इकरार या समझौतों (contracts) को लागू करना तथा देश की मुद्रा (currency) को स्थिरता प्रदान करना कल्याण कार्यक्रमों से सरकार का कोई सरोकार नहीं है। सरकार यदि इन कार्यों को अपने हाथ में ले तो एक अत्याचारी नौकरशाही व्यवस्था' (oppressive bureaucratic government) के उठ खड़े होने की संभावना है।



https://www.edukaj.in/2022/04/human-rights.html



ब्रिटेन में श्रीमती चैंचर की सरकार और अमेरिका की रेगन सरकार ने इन्हीं नीतियों का अनुसरण करने की कोशिश की थी। इन नीतियों के समर्थक कहते हैं कि "सरकार को चाहिए कि अपना बिस्तर-बोरिया समेटे" (Rolling Back of the State), अन्यथा वह अपने भार से दबकर ही विनष्ट हो जाएगी।


नकारात्मक स्वतंत्रता के लक्षण (Characteristics of Negative Liberty) - स्वतंत्रता का नकारात्मक सिद्धांत 'अहस्तक्षेप दायरे' (Zone of Non-intervention) की ओर संकेत करता है। वह बतलाता है कि वे कौन-कौन से क्षेत्र है जिनमें हस्तक्षेप न किया जाए। इन विद्वानों की मान्यताओं को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:


 (i) जितने ज्यादा कानून होंगे उतनी ही कम स्वतंत्रता होगी: 


(ii) मत और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार (liberties of opinion, expression, religion and property) पर प्रतिबंध का लगाया जाना उन्हें कतई पसंद नहीं है; 


(iii) इन विद्वानों ने मताधिकार को व्यापक बनाने पर बल दिया तथा


 (iv) ये सभी विचारक सरकार के कार्यक्षेत्र को बहुत सीमित रखना चाहते हैं। उनके मतानुसार "वह सरकार सबसे अच्छी है जो सबसे कम शासन करे" (That government is the best which governs the least) ।


नकारात्मक सिद्धांत की त्रुटियाँ


(Drawbacks of the Concept of Negative Liberty) स्वतंत्रता के नकारात्मक सिद्धांत की प्रमुख त्रुटियाँ इस प्रकार हैं:


प्रथम, इस सिद्धांत का दार्शनिक पहलू कमजोर है। व्यक्तिवादी विचारक 'व्यक्ति' को अत्यंत स्वार्थी और आत्मकेंद्रित समझते हैं। वास्तव में, व्यक्ति समाज' पर निर्भर है। जो कुछ वह है या हो सकता है, वह सब समाज ही के कारण है। व्यक्ति चूँकि समाज में रहता है, इसीलिए उसका जीवन संभव हो सका, इसी वजह से वह बोलना सीख सका और उसके विचार या संस्कार सामाजिक तत्त्वों से ही बने हैं।


दूसरे, नकारात्मक स्वतंत्रता आर्थिक व व्यावहारिक दृष्टि से सारहीन और निर्रथक है। नकारात्मक सिद्धांत समर्थक 'राज्य के कार्यों' और 'व्यक्ति की स्वतंत्रता', इन दोनों के बीच मौलिक विरोध मानते हैं। वे राज्य के कार्यों को न्यूनत कर देने के पक्ष में हैं और यह मानकर चलते हैं कि राज्य का काम सिर्फ अपराधों की रोकथाम करना है। यह सिद्धांत राज के लोककल्याणकारी कार्यों को अनदेखा कर देता है। वास्तव में, राज्य का काम अपराध और अनाचार का दमन मात्र नहीं है वह शिक्षा, संस्कृति, कला, कृषि और उद्योगों को प्रोत्साहन देता है। यह सद्जीवन के मार्ग में आने वाली बाधाओं-अशिक्ष गरीबी और विषमताओं का निराकरण कर सकता है। राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोधी मानना गलत है।


तीसरे नकारात्मक सिद्धांत का न्याय-पक्ष भी बहुत कमजोर है। मनुष्यों के बीच बल, बुद्धि और धन का समानता नहीं पाई जाती। राज्य यदि निर्बलों और निर्धन लोगों की रक्षा न करे तो शक्तिशाली व्यक्ति उन्हें पीस डालेंगे। नकारात्म स्वतंत्रता का परिणाम बड़ा भयंकर और अन्यायपूर्ण होता है।



सकारात्मक स्वतंत्रता का सिद्धांत (Concept of Positive Liberty)


उन्नीसवीं सदी के महान विचारक टी. एच. ग्रीन तथा बीसवीं सदी के कुछ प्रमुख लेखकों (लास्की, हॉबहाउस और मैकाइवर) ने यह कहा, "स्वतंत्रता एक बहुत अच्छी चीज है परंतु यदि स्वतंत्रता के नाम पर अनुचित कार्यों को करने की छूट दे दी जाए तो 'स्वतंत्रता' और 'स्वेच्छाचार' में कोई भेद नहीं होगा।" हस्तक्षेप का अभाव तो केवल नकारात्मक स्वतंत्रता होगी। असली स्वतंत्रता 'सकारात्मक' होती है, जिसका अर्थ है-“बांछनीय (desirable) कार्यों को करने की सुविधा।" ग्रीन और लास्की स्वतंत्रता का अभिप्राय 'बंधनों का अभाव' नहीं मानते, बल्कि 'सुअवसरों का होना' समझते हैं। 


टामस हिल ग्रीन (T. H. Green) ने 1860 ई. में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया था। उस समय तक अहस्तक्षेप नीति के कुप्रभाव पूर्णतया स्पष्ट हो चुके थे। इसलिए ग्रीन इस निष्कर्ष पहुँचा कि राज्य को एक -"तटस्य पर्यवेक्षक" (neutral observer) न रहकर एक "सक्रिय नियामक या संरक्षक" (active regulator) होना चाहिए। स्वतंत्रता और अधिकार की अब एक नयी व्याख्या की जरूरत थी। यह कार्य ग्रीन ने किया। उसके ऊपर जर्मन आदर्शवादियों (कांट, फिक्टे और हीगल) के दर्शन की बड़ी छाप थी। इसलिए उसने राज्य को एक नैतिक संस्था बतलाया और यह कहा कि -राज्य के उद्देश्य' और 'व्यक्ति की स्वतंत्रता' के बीच कोई स्वाभाविक विरोध नहीं है। ग्रीन के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ "प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। जिस प्रकार "कुरूपता का अभाव सौंदर्य नहीं कहला सकता है (absence of ugliness is Got beauty), वैसे ही प्रतिबंधों का अभाव स्वतंत्रता नहीं है।" स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है-"उन कार्यों को करने उन सुखों को भोगने का अधिकार जो वास्तव में भोगने योग्य हों।" ग्रीन के मतानुसार उन सब मनुष्यों तथा बुराइयों अशिक्षा, गरीबी और मदिरापान) का दमन किया जाए जो व्यक्ति की वास्तविक स्वतंत्रता या उसके नैतिक विकास में बाधक । यदि राज्य अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करता है तो वह व्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण न करके उन दशाओं को ही त्पन्न करता है जिनमें व्यक्ति की उन्नति संभव हो सके।


सकारात्मक स्वतंत्रता के बारे में बीसवीं शताब्दी के लेखकों के विचार (20th Century Writers on Positive Liberty)-बीसवीं शताब्दी के प्रमुख लेखक हैरोल्ड लास्की के अनुसार, "स्वतंत्रता यत्नपूर्वक एक ऐसे वातावरण को बनाए रखने का नाम है जिसमें व्यक्ति को ज्यादा-से-ज्यादा आत्म-विकास का सुअवसर प्राप्त हो सके। हर तरह के कार्य को करने की सुविधा का नाम स्वतंत्रता नहीं। चोरी करने या जुआ खेलने की सुविधा को स्वतंत्रता नहीं कहेंगे। केवल ऐसे कार्यों के लिए सुविधा या अवसर मिलने चाहिएँ जो आत्मविकास में सहायक बनें। लास्की ने स्वतंत्रता के तीन पहलुओं पर विशेष बल दिया-निजी स्वतंत्रता (private liberty), जैसे इच्छानुसार कुछ भी खाना-पीना या किसी भी मजहब में विश्वास रखना; राजनीतिक स्वतंत्रता (political liberty) अर्थात् सरकार के कार्यों में सक्रिय भागीदारी; और आर्थिक स्वतंत्रता अर्थात् उद्योगधंधों का संचालन मजदूरों के प्रतिनिधियों की ही इच्छानुसार किया जाए। लास्की ने यह चेतावनी भी दी है कि राज्य का हर कानून स्वतंत्रता का पोषण नहीं करता। उसके अनुसार स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लोगों को साहसी होना पड़ेगा। 


बीसवीं शताब्दी में 'व्यक्तिवाद' ने 'उदारवाद' का रूप ग्रहण कर लिया था। हॉबहाउस (Hobhouse) ने अपने ग्रंथ "नियोलिज्म' (Liberalism) में नी तरह की स्वतंत्रताएँ गिनवाई नागरिक स्वतंत्रता (civil liberty), राजकोषीय स्वतंत्रता (fiscal liberty) जिसका अर्थ है कि जनता पर मनमाने कर न लगाये जाएँ: आर्थिक स्वतंत्रता (economic liberty); पारिवारिक स्वतंत्रता (domestic liberty); व्यक्तिगत स्वतंत्रता (personal liberty) जिसके अंतर्गत उसने विचार और भाषण की स्वतंत्रता पर बल दिया है, सामाजिक स्वतंत्रता (social liberty) जिसका अर्थ यह है कि मजहब, जाति या लिंग के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव न किया जाए, संजातीय अथवा राष्ट्रीय स्वतंत्रता (racial and national liberty); राजनीतिक स्वतंत्रता (political liberty); तथा अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्रता (international liberty) अर्थात् राष्ट्रों के आपसी संबंधों में शक्ति का प्रयोग कम से कम हो।


कई समकालीन लेखकों जैसे सी. बी. मैकफरसन और जॉन राल्स ने भी सकारात्मक स्वतंत्रता की ही दुहाई दी। मैकफरसन ने पूंजीवादी व्यवस्था की कमियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। इस व्यवस्था में श्रमिक अपनी मर्जी का मालिक नहीं होता, क्योंकि उसके पास अपने श्रम को बेचने के अलावा और कोई चारा नहीं है। उसकी इस लाचारी का लाभ उठाकर पूंजीपति उसका शोषण करते हैं। इस शोषण से श्रमिकों की रक्षा 'राज्य' ही कर सकता है। इसी तरह जॉन रात्स ने भी आय के पुनर्वितरण की बात की है, ताकि कम योग्यता और कम क्षमता रखने वाले लोगों के हितों की रक्षा की जा सके।


संक्षेप में, जैसा कि डेविड हैल्ड ने कहा है, "स्वतंत्रता को यदि सकारात्मक रूप में स्वीकार न किया जाए तो उसका बहुत अधिक महत्त्व नहीं है। नागरिक के समक्ष बहुत से विकल्प रहने चाहिए, ताकि वह जिसे चाहे उसे पसंद करे। स्वतंत्रता का सही अर्थ एक ऐसी "योग्यता या क्षमता" है कि व्यक्ति राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में मनचाहे मार्ग का अनुसरण कर सके। पर इस तरह की योग्यता वह तभी अर्जित कर सकता है जब उसे स्वास्थ्य, शिक्षा और हुनर हासिल करने के साधन उपलब्ध हो।" इस बहस को और आगे बढ़ाते हुए डेविड हेन्ड यह भी लिखते हैं कि आपचारिक (formal) या दिखाऊ स्वतंत्रताओं का कोई मूल्य नहीं। स्वतंत्रताएँ और अधिकार सिर्फ कानूनों तक ही सीमित नहीं रहने चाहिए। प्रश्न यह कि उन्हें यथार्थ रूप कसे मिले (How can they be actualized ?)



स्वतंत्रता के नकारात्मक और सकारात्मक सिद्धांतों के बीच अंतर (Distinction between the Negative and Positive Concepts of Liberty)


नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक कहते हैं कि राज्य को व्यक्ति के जीवन में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए। राज्य का कार्य सिर्फ अपराधियों को दंड देना और देश की सुरक्षा की व्यवस्था करना है। इसके ठीक विपरीत स्वतंत्रता का सकारात्मक सिद्धांत यह मानकर चलता है कि 'व्यक्ति' और 'राज्य' के बीच कोई स्वाभाविक विरोध नहीं है। ग्रीन और लास्की ने राज्य के कार्यक्षेत्र को बहुत व्यापक माना है। ये विचारक कानून के माध्यम से ही सुधार लाना चाहते हैं। निम्नलिखित उदाहरणों से


नकारात्मक व सकारात्मक स्वतंत्रता के अंतर को बखूबी समझा जा सकता है: 


(i) नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक कह सकते हैं कि 'शिक्षा' (education) के क्षेत्र में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, सभी लोगों को अपनी इच्छानुसार अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने का अधिकार है। इसके ठीक विपरीत स्वतंत्रता का सकारात्मक सिद्धांत कहता है कि राज्य को चाहिए कि वह बच्चों के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा का प्रबंध करे।" यदि शिक्षा महँगी है और आम लोगों के पास अपने बच्चों को शिक्षित करने के साधन न हो तो शिक्षा के क्षेत्र में 'स्वतंत्रता' का क्या मूल्य है?


(ii) यही बात 'व्यवसाय और कारोबार की स्वतंत्रता' (freedom of occupation and trade) पर भी लागू होती है। केवल यह कह देने से ही काम नहीं चलेगा कि नागरिकों को कोई भी कारोबार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। इस स्वतंत्रता का वास्तविक मूल्य तब है जब सरकार की यह जिम्मेदारी हो कि वह सबके लिए काम जुटाए। आर्थिक व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि उद्योगपतियों को कारखाने लगाने के अवसर तो उपलब्ध रहें, परन्तु वे मजदूरों का शोषण न कर सकें। 'उचित मजदूरी' (fir wage) और 'सामाजिक सुरक्षा' (social security) के लिये बनाये गये कानूनों को स्वतंत्रता के मार्ग का रोड़ा माना जाए या स्वतंत्रता जुटाने का साधन, इस बात का निर्णय हम आसानी से कर सकते हैं। मार्क्सवादी लेखकों ने तो यहाँ तक कहा है उत्पादन के साधनों पर निजी अधिकार बिल्कुल समाप्त कर दिया जाए।


https://www.edukaj.in/2022/04/important-national-and-international.html



(iii) 'विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' (freedom of thought and speech) का भी अपना एक विशेष महत्त्व है, परंतु मनुष्यों को कुछ भी कहने या करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। अमेरिका में जो 'कू-क्लक्स-क्लैन' (Ku Klux) Klan) नामक संगठन था उसके सदस्यों ने काले लोगों के विरुद्ध एक गंदा प्रचार शुरू कर दिया था। इस प्रचार ने श्वेत लोगों को हिंसा की ओर प्रेरित किया जिससे काले लोगों का जीवन दूभर बन गया। ऐसी स्थिति में कू-क्लक्स-क्लैन के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करनी पड़ी।


अंत में हम टी. एच. ग्रीन (T. H. Green) के इन शब्दों को फिर से दोहराना चाहेंगे, "स्वतंत्रता का अर्थ है-किसी ऐसे कार्य को करने अथवा ऐसे अवसर का भोग करने की शक्ति जो कि करने अथवा भोग के योग्य हो" ( doing some thing worth doing or enjoying) । मेकेलम (Mac Callum) ने नकारात्मक और सकारात्मक सिद्धांतों के बीच मेल-मिलाप की बात रखी है। उसके अनुसार, “कुछ बातों में हम 'स्वाधीन' रहने चाहिएँ, जिसे हम स्वतंत्रता का नकारात्मक सिद्धांत कह सकते हैं, पर साथ ही यह भी जरूरी है कि कुछ ‘अवसर या सुविधाएँ' हमें जुटाई जाएँ, जिसे हम स्वतंत्रता का सकारात्मक सिद्धांत कहेंगे।" शिक्षा, स्वास्थ्य और शोषण से रक्षा के लिए राज्य यदि कोई कानून बनाता है तो उससे स्वतंत्रता में कमी न होकर, वृद्धि होती है। स्वतंत्रता का सही अर्थ केवल प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। साथ ही, उन सुअवसरों का होना भी जरूरी है जिनके बिना व्यक्ति का अधिकतम विकास संभव नहीं है।


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