google-site-verification=V7DUfmptFdKQ7u3NX46Pf1mdZXw3czed11LESXXzpyo स्वतंत्रता और कानून (LIBERTY AND LAW) Skip to main content

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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

स्वतंत्रता और कानून (LIBERTY AND LAW)

 स्वतंत्रता और कानून (LIBERTY AND LAW)



"राज्य का कानून" और "मनुष्य की स्वतंत्रता ऊपर से देखने पर परस्पर विरोधी बातें प्रतीत होती है। कुछ लेखकों ने दोनों के बीच स्वाभाविक विरोध माना है। किंतु गंभीरता से विचार करने पर इस सिद्धांत की कमियाँ समझ में आ जायेंगी। यहाँ हम स्वतंत्रता' और 'कानून के आपसी संबंधों के विषय में चार खास विचारधाराओं का वर्णन करेंगे।


अराजकतावादी सिद्धांत कानून एक बुराई है। (Anarchist Doctrines: Law is an Evil)


अराजकतावादियों ने राज्य और उसके कानूनों को जन-स्वतंत्रता का विरोधी माना है। क्रोपाटकिन (Kropotkin) औ चाकुनिन (Bakunin) का कहना है कि राज्य एक बुराई है और जन क्रांति द्वारा उसका तुरंत विनाश कर देना चाहिए रूसी विद्वान टाल्सटाय (Tolstoy) भी अराजकतावादी ही थे, यद्यपि उन्होंने हिंसक क्रांति द्वारा नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण उप से राज्य की समाप्ति पर बल दिया है। इन विद्वानों के अनुसार समाज का संगठन ऐच्छिक सहयोग और स्वतंत्रता के आपर पर किया जाए, राजनीतिक आधार पर नहीं। उन्होंने जिस समाज का चित्र खींचा है, उसमें 'व्यवस्था' तो होगी परंतु 'विवशत कहीं नहीं।


 वास्तव में अराजकतावादी विचारधारा बहुत अव्यावहारिक-सी है। अराजकतावादियों का यह कहना कि सभी बुराइयों के जड़ राज्य के कानून है, ठीक नहीं जान पड़ता।





स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार क्या है? 

अवश्य पढ़े:-

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व्यक्तिवादी सिद्धांत : कानून एक आवश्यक बुराई है। (The Individualistic Theory : Law is a Necessary Evil)


एडम स्मिथ और हरबर्ट स्पेंसर जैसे व्यक्तिवादी लेखक भी राज्य को एक 'बुराई' मानकर चलते हैं, परंतु उन्होंने उसे एक 'आवश्यक बुराई' (necessary evil) कहा है। इसका अर्थ है कि राज्य संस्था को समाप्त तो नहीं किया जा सकता, पर उसका कार्यक्षेत्र जितना सीमित रहे, उतना ही अच्छा है। व्यक्तिवादियों ने स्वतंत्रता के नकारात्मक सिद्धांत पर बल दिया है। हरबर्ट स्पेंसर के मतानुसार राज्य को कम-से-कम कार्य करने चाहिएँ। राज्य के केवल दो कार्य हैं-


(i) शांति और व्यवस्था की स्थापना, 


(ii) विदेशी आक्रमणों से देश की रक्षा कई समकालीन लेखक भी राज्य के कानून और व्यक्ति की स्वतंत्रता में मौलिक विरोध मानकर चलते हैं, जैसे कि हेयक और रॉबर्ट नाजिक इन विद्वानों ने कहा है कि व्यक्ति को अपने विवेक के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।




आदर्शवादी सिद्धांत कानून पालन में ही स्वतंत्रता निहित है (Idealistic Theory: Liberty consists in Obedience to the Law)


ऊपर हमने जिन दो विचारधाराओं का जिक्र किया है ये राज्य के कानूनों' और 'व्यक्ति की स्वतंत्रता में मौलिक विरोध मानती हैं। इसके ठीक विपरीत जो विचारधारा है उसे 'आदर्शवाद' (Idealism) कहते हैं। अठारहवीं व उन्नीसवीं शताब्दी में इस विचारधारा के दो प्रमुख समर्थक थे : एक तो फ्रेंच विचारक रूसो, और दूसरे, जर्मन विचारक हीगल। रूसी के अनुसार एक आदर्श राज्य 'सामान्य इच्छा' (general will) के अनुसार चलता है। अतः 'शासक' और 'प्रजा' के बीच कोई मौलिक भेद नहीं है। इसलिए लोगों को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का कोई अधिकार नहीं है। होगल ने तो शासक को नैतिकता का संरक्षक माना है। स्वतंत्रता का चरम विकास राज्य द्वारा ही संभव है। दूसरे शब्दों में, "राज्य ही मूर्तिमान स्वतंत्रता है। इस कारण वह हमारी परम श्रद्धा का पात्र है। इसका विरोध कदापि उचित नहीं।"





स्वतंत्रता की अवधारणा क्या है?

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निष्कर्ष तर्कसंगत और उचित कानून स्वतंत्रता का रक्षक है (Reasonable and Fair Law promotes Freedom)


उपरोक्त तीनों विचारधाराएँ किसी-न-किसी दृष्टि से दोषपूर्ण मानी जाती है। यह कहना कि 'कानून' और 'स्वतंत्रता में एक मौलिक विरोध है, उचित नहीं माना जा सकता। स्वतंत्रता कोई 'नकारात्मक' चीज नहीं है अर्थात् हस्तक्षेप का अभाव हो स्वतंत्रता नहीं। हम चाहे नागरिक स्वतंत्रता को लें या आर्थिक व राजनीतिक स्वतंत्रता को, हर तरह की स्वतंत्रता पर कोई-न-कोई प्रतिबंध अवश्य लगाया जाएगा। साथ ही, आदर्शवादियों का भी यह मत तर्कसंगत नहीं दिखता कि कानूनों का विरोध किसी भी दशा में उचित नहीं और हर कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता का पोषण करता है। अनेक ऐसे उदाहरण दिए जा सकते हैं कि राज्य ने अन्यायपूर्ण कानून बनाए और अन्यायपूर्ण ढंग से उन्हें लागू किया।


कानून व स्वतंत्रता का परस्पर गहरा संबंध है (Law and Liberty are closely related to each other) -


स्वतंत्रता के लिए कानूनों का होना अनिवार्य है। निर्वाय या असीम स्वतंत्रता (absolute liberty) जैसी कोई चीज [संभव है ही नहीं। कुछ उदाहरणों से यह बात भली-भांति समझ में आ जाएगी। विचार और भाषण की स्वतंत्रता पर इस तरह के प्रतिबंध जरूरी है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की मानहानि न कर सके। नागरिकों को सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता होती है, पर कोई भी राज्य नागरिकों के हिंसक कार्यों को सहन नहीं कर सकता। इसी प्रकार यदि अनाज या अन्य जरूरी वस्तुओं का राशन कार्ड द्वारा वितरण किया जाता है तो हम उसे इसलिए बुरा नहीं मानते क्योंकि राशन द्वारा सभी लोगों तक दुर्लभ वस्तुएँ पहुँचाई जा रही हैं। यदि स्वास्थ्य विभाग किसी बीमारी की रोकथाम के लिए टीके लगवाना अनिवार्य कर दे तो उसे भी हम अनुचित प्रतिबंध नहीं कहेंगे।




हेल्थ इंश्योरेंस क्यों है जरूरी ?

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फौजदारी के मामलों (चोरी, मारपीट, हत्या, आदि) और पारिवारिक व दीवानी विवादों (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, साझेदारी व माल के क्रय-विक्रय संबंधी विवादों) को निबटाने के लिए राज्य को कानून अवश्य बनाने पड़ेंगे। इसके अतिरिक्त श्रमिकों, किसानों और आम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए भी बहुत से कानून मौजूद है। सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन (socio-economic change) लाने के लिए भी कानून बनाने पड़ते हैं। जमींदारी प्रथा, छुआछूत, दहेज प्रथा और बेगार की प्रथा के रोकथाम के लिए भारत सरकार को बहुत-से कानून बनाने पड़े। देश में समान नागरिक संहिता (uniform civil code) लागू करने के लिए सरकार को कुछ समुदायों के निजी कानूनों में परिवर्तन करना पड़ेगा। इस तरह के कानून या प्रतिबंध सकारात्मक स्वतंत्रता' (positive freedom) के अंतर्गत आते हैं, पर इसका यह अभिप्राय नहीं कि हम राज्य के हर कानून के आगे घुटने टेक दें। हम ऐसे प्रतिबंधों का स्वागत नहीं करेंगे जो व्यक्ति या समाज की उन्नति में बाधक हो।


स्वतंत्रता की रक्षा के उपाय


(SAFEGUARDS TO LIBERTY) 'अधिकार' और 'स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं:


1. सरकार का लोकतंत्रीय स्वरूप (Democratic form of Government)- राजतंत्र अथवा तानाशाही में Writte एक व्यक्ति या कुछ विशेष व्यक्तियों का शासन होता है। ये सरकारें 'समता' और 'स्वतंत्रता' के सिद्धांत को स्वीकार करतीं। इसके ठीक विपरीत लोकतंत्र में सभी बालिग स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त होता है। लोकतंत्र में विचार, अभिय और धर्म की स्वतंत्रता सरकार द्वारा मान्य होती है। मानव अधिकार घोषणापत्र में कहा गया है, “सरकार की सत्ता का आश जनता की इच्छा ही हो सकती है" (The Will of the People shall be the basis of the authority of Governmen 



2. अधिकारों को संविधान में लेखबद्ध किया जाए (Safeguards afforded by a Constitution) - संविधान का उद्देश्य नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करना है। अमेरिकी संविधान तथा भारतीय संविध बहुत-सी स्वतंत्रताओं की घोषणा करते हैं। कम्युनिस्ट रूस के संविधान में न केवल अधिकारों का आश्वासन दिया गया, बोल उन्हें लागू करने की भी व्यवस्था की गई। 



3. स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका (Free and Impartial Judiciary) - स्वतंत्रता की एक अनिवार्य शर्त यह है न्यायाधीश निष्पक्षता से न्याय प्रदान करें। उनकी नियुक्ति और पद से पृथक किए जाने का तरीका ऐसा हो कि कार्यपालि न पर अनुचित दबाव न डाल सके। इसके अतिरिक्त न्याय व्यवस्था यदि जटिल और महंगी है तो गरीब व्यक्ति को न्याय मि ही नहीं सकता। वैथम (Bentham) इंग्लैंड की न्यायप्रणाली के विषय में कहा करता था कि इस देश में न्याय बिकता है। और बहुत महंगा बिकता है।" भारत में भी यही स्थिति है। मुकद्दमों के निर्णयों में महीनों और वर्षों लग जाते हैं। फरवरी 985 में उच्चतम न्यायालय के सामने एक ऐसे व्यक्ति (शंकरदास) का मामला आया, जिसे न्याय हासिल करने के लिए। नाल लड़ना पड़ा।


4. संघों और समुदायों की स्वतंत्रता (Autonomy of Groups and Associations) - शिक्षा, कृषि, व्यापार, कला, धर्म और विज्ञान से संबंधित बहुत से संघ या समुदाय होते हैं। मजदूरों की अपनी यूनियनें होती है। ये समुदाय या 'संघ' सरकार की शक्तियों पर अंकुश का कार्य करते हैं। प्रदर्शन, प्रचार और आंदोलन के जरिये वे अपनी बात सरकार तक पहुंचाते तथ न अधिकारों की रक्षा करते हैं। विरोधी दल लगातार सरकार के कार्यों की छानबीन और आलोचना करते रहते हैं। कोई में रकार विरोधियों के आरोपों को अनसुना नहीं कर सकती।


5. जनसंपर्क माध्यम की स्वतंत्रता (Free Mass Media) रेडियो, टेलीविजन और समाचारपत्रों पर सरकार का काधिकार नहीं होना चाहिए। इन्हें सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जनसंपर्क माध्यमों के द्वारा हो पने विचार औरों तक पहुंचा सकते हैं। समाचार माध्यम की स्वतंत्रता से ही जन अधिकार सुरक्षित रह सकते हैं। स्वतंत्रत रक्षा प्रबुद्ध जनमत' पर निर्भर करती है। कहावत है, “स्वतंत्रता का मूल्य निरंतर सतर्कता है" (eternal vigilance is the fice of liberty)। जनमत के निर्माण के लिए समाचारपत्रों और प्रचार के अन्य साधनों की आजादी जरूरी है।


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