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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार ,VARIOUS FORMS OF LIBERTY

स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार

(VARIOUS FORMS OF LIBERTY )



मोटे रूप से स्वतंत्रता के तीन प्रकार हैं-नागरिक स्वंतत्रता, राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता प्रायः यह कहा जाता है कि उदारवादियों ने नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी, जबकि मार्क्सवादियों ने आर्थिक अधिकारों को। नीचे हम स्वतंत्रता के इन तीनों प्रकारों के साथ-साथ 'राष्ट्रीय स्वतंत्रता' की भी चर्चा करेंगे। 1. नागरिक स्वतंत्रता (Civil Liberty)-नागरिक स्वतंत्रता के अंतर्गत निम्नलिखित स्वतंत्रताऍ शामिल हैं:




(i) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा (Protection of Life and Personal Liberty)- इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवित रहने का अधिकार है। प्राणरक्षा के लिए एक व्यक्ति आक्रमणकारी की जान तक ले सकता है। सरकार लोगों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार नहीं कर सकती। मानव अधिकार घोषणापत्र (Universal Declaration of Human Rights) के अंतर्गत कहा गया है कि "किसी को भी उत्पीड़क, क्रूर, अमानवीय और निम्न कोटि की सजा नहीं दी जाएगी।" इसी प्रकार आहार-विहार, वेश-भूषा और रहन-सहन की दृष्टि से नागरिक स्वतंत्र हैं।


(ii) पारिवारिक स्वतंत्रता (Domestic Liberty)-परिवार (स्त्री, पुरुष व बच्चे) समाज की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। उसके भी अपने अधिकार हैं। नागरिकों के 'गोपनीयता के अधिकार' (right to privacy) को कानूनन मान्यता दी जानी चाहिए। चोरी-छिपे लोगों के फोटो खींचना और उनके निजी जीवन के बारे में जानकारी एकत्रित करना, यूरोप और अमेरिका में एक आम बात हो गई है। नागरिकों के निजी जीवन की ख़बरों से अखवार भरे रहते हैं और उससे होने वाली पीड़ा का अनुमान हम लगा सकते हैं। इसीलिए अब गोपनीयता के अधिकार पर बल दिया जाने लगा है।




स्वतंत्रता की अवधारणा (THE CONCEPT OF LIBERTY):- अवश्य पढ़े

https://www.edukaj.in/2022/05/concept-of-liberty.html




(iii) विचार और सभा-सम्मेलन की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Assembly)-व्यक्ति के नैतिक और मानसिक विकास के लिए विचार और सभा-सम्मेलन की स्वतंत्रता बहुत आवश्यक है। परंतु युद्ध या संकट की स्थिति में इस -अधिकार के ऊपर कुछ प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। विचार और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में समाचारपत्र एक अहम् भूमिका निभाते हैं। इसलिए प्रेस (समाचारपत्रों) का स्वतंत्र और जिम्मेदार होना जरूरी है। लोकतंत्रीय देशों में भी समाचारपत्रों को बहुत से दबावों में काम करना पड़ता है, जैसे कि सरकार का दबाव, आतंकवाद का दबाव, जातीय और सामंती शक्तियों का दबाव, बाजार की महँगाई का दबाव, पाठकों की पसंद-नापसंद का दबाव, मजदूर यूनियनों का दबाव विज्ञापनदाताओं का दबाव नहीं करना चाहिए,


(iv) धर्मपालन की स्वतंत्रता (Religious Liberty)-राज्य को मजहबी मामलों में कोई हस्तक्षेप पर राज्य इस तरह के कानून बना सकता है जिनसे सामाजिक सुधार को बल मिले, भले ही वे धर्म से संबंध रखते हो।


(v) संघ या समुदाय बनाने की स्वतंत्रता (Freedom to form Unions and Associations)- नागरिकों को संघ और समुदायों के निर्माण की स्वतंत्रता है, बशर्ते कि उनका उद्देश्य सुरक्षा व शांति को खतरा पहुँचाना न हो।


(vi) इच्छानुसार घूमने-फिरने की स्वतंत्रता (Freedom of Movement)-आत्मविकास के लिए यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति इच्छानुसार घूमने-फिरने को स्वतंत्र हो। इसमें विदेश जाने की स्वतंत्रता भी शामिल है।




(vii) करार या समझौता करने की स्वतंत्रता (Freedom of Contract) - विवाह, संपत्ति, रोजगार और व्यापार के क्षेत्र में लोगों को बहुत से अनुबंध या करार करने पड़ते हैं।


सभी लोकतंत्रीय देशों में नागरिकों को उपरोक्त स्वतंत्रताएँ मिली होती है, पर सार्वजनिक शांति और व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सरकार इन स्वतंत्रताओं पर उचित प्रतिबंध लगा सकती है। तानाशाही सरकारें नागरिक स्वतंत्रताओं में काफो काट-छाँट कर देती हैं।



https://www.edukaj.in/2022/04/important-national-and-international.html




2. राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty) हैरोल्ड लास्की (Harold Laski) ने राजनीतिक स्वतंत्रता की यह परिभाषा दी है-"राजकीय मामलों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने को ही राजनीतिक स्वतंत्रता कहते हैं (Political liberty means the power to be active in affairs of State)। इस स्वतंत्रता के अंतर्गत ये अधिकार आते हैं-


(i) चुनावों में मत देने का अधिकार, 


(ii) संसद या अन्य सार्वजनिक संस्थाओं की सदस्यता ग्रहण करने का अधिकार,


 (iii) राजनीतिक दलों के निर्माण का अधिकार तथा,


 (iv) सरकार की आलोचना करने का अधिकार कुछ विशेष परिस्थितियों में नागरिक यह मांग भी कर सकते हैं कि वर्तमान विधानमंडल को भंग कर दिया जाए और उसके स्थान पर एक नये विधानमंडल का गठन किया जाए।



3. आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Liberty)-


अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के व्यक्तिवादी व उदारवादी विचारकों को यह धारणा थी कि भूमि और पूँजी पर निजी नियंत्रण बना रहे तथा आर्थिक क्रियाओं में राज्य हस्तक्षेप न करे । उनका विश्वास था कि "व्यक्ति और राज्य, ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी है और इसलिए मनुष्यों की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब राज्य कम-से-कम कार्य करे।" अधिकांश उदारवादी लेखकों ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि राज्य को मजदूरों के कार्य करने के घंटे या उनकी मजदूरी निश्चित करने का कोई अधिकार नहीं है। धीरे-धीरे इन विचारों की कमियाँ लोगों के सामने आईं। माक्र्क्सवादियों ने उदारवादियों की सभी आर्थिक दलीलों को अपना निशाना बनाया है। वास्तव में, आर्थिक स्वतंत्रता के बारे में न तो व्यक्तिवादी दृष्टिकोण एकदम सही है और न मार्क्सवादियों के इस कथन में सच्चाई है कि सिर्फ कम्युनिस्ट व्यवस्था ही स्वतंत्रता की स्थापना कर सकती है। नीचे हम आर्थिक स्वतंत्रता के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करेंगे।



https://www.edukaj.in/2022/04/human-rights.html



(i) औद्योगिक स्वशासन (Industrial Self-government)-उन्नीसवीं सदी के अंतिम दिनों में ही यह कहा जाने लगा कि 'औद्योगिक जगत में लोकतंत्र' (democracy in industry) की स्थापना की जाए। 'औद्योगिक लोकतंत्र' से अभिप्राय यह है कि कारखानों का प्रबंध श्रमिकों और उनके प्रतिनिधियों के हाथों में होना चाहिए। बहुत-से उदारवादी लेखक इस धारणा से सहमत नहीं हैं। फिर भी, यह जरूरी है कि कारखानों के संचालन में मजदूरों का सहयोग लेने की योजनाएँ बनाई जाएं, ताकि उद्योगपति मजदूरों का शोषण न कर सकें। 


(ii) काम व विश्राम का अधिकार (Right to Work and the Right to Rest and Leisure)–


आर्थिक स्वतंत्रता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार काम पाने का अधिकार मिलना चाहिए। उसका वेतन या मजदूरी इतनी अवश्य हो कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर सके। व्यक्ति को आराम और विश्राम का अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए अर्थात् उसके कार्य के घंटे निश्चित हों। कम्युनिस्ट रूस पहला ऐसा देश था जहाँ नागरिकों को 'काम का अधिकार' प्रदान किया गया। चीन का संविधान भी यह घोषणा करता है कि “काम करना नागरिकों का अधिकार भी है और कर्त्तव्य भी ।"


(iii) संपत्ति अर्जित करने, उसे जमा करने व खर्च करने की स्वतंत्रता (Freedom to acquire, hold and dispose of Property)- आर्थिक स्वतंत्रता का यह अभिप्राय है कि नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने और उसे खर्च करने की स्वतंत्रता प्राप्त हो । सार्वजनिक भलाई को ध्यान में रखते हुए इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, इस प्रकार का कोई कानून बनाया जा सकता कि कोई व्यक्ति अधिक-से-अधिक कितनी शहरी संपत्ति या कृषि भूमि रख सकता है।



https://www.edukaj.in/2022/05/periar-on-identity-in-hindi.html




4. जातीय तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता (Racial and National Liberty)-हॉबहाउस (Hobhouse) ने जिन स्वतंत्रताओं का उल्लेख किया है, उनमें जातीय और राष्ट्रीय स्वतंत्रता का भी बड़ा महत्त्व है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक राष्ट्र को स्वशासन का अधिकार होना चाहिए। कोई भी राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र को गुलाम बनाए रखने का अधिकार नहीं रखता। 'स्वतंत्रता' का सिद्धांत राष्ट्रों की स्वतंत्रता व समानता का समर्थन करता है तथा युद्ध और साम्राज्यवाद का विरोधी है। प्रथम महायुद्ध (1914-18) के बाद राष्ट्रीयता की भावना संसार के कोने-कोने में फैल गई। एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देश स्वतंत्र हो चुके हैं। 1990 में एक लंबे संघर्ष के बाद नामीबिया को आजादी मिली।


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