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1857 की क्रांति की महत्वपूर्ण जानकारी
1857 की क्रांति
आधुनिक भारत के इतिहास में 1857 अपना विशिष्ट महत्व रखता है, क्योंकि इसी वर्ष मे भारतीय स्वाधीनता संग्राम की। शुरुआत मानी जाती है।
1857 की क्रांति का तात्कालिन कारण
1. 1857 के विद्रोह के तात्कालिन का कारण सैनिक थे।
2 कंपनी ने भारतीयों के प्रति जो भेदभाव की नीति रखी थी उसका सर्वाधिक स्पष्ट रूप सेना में था ।
3 उसी मे भारतीयों के रोजगार मिलने की सर्वाधिक संभावना थी।
4 इस कारण हम पहले भी देखते हैं। कि 1765 में बंगाल में, 1806 मे वेल्लुर मे, 1824 मे बैरकपुर मे और अन्य भी सेना में विद्रोह होते रहे।
'5 कितनी भी योग्यता या बहादुरी दिखाने पर आरतीयों को सिपही से ऊंची पदोन्नति नहीं मिलती थी ।
6 भारतीय सैनिकों के वेतन, भन्ने आदि भी अंग्रेजी की तुलना मे बहुत कम थे।
7 साथ ही खान -पान, रहन सहन (एवं व्यवहार में भी भारतीयों के साथ भेदभाव बरता जाता था।
8 सेना में भी पादरी ईसाई धर्म के प्रचार के लिए आते रहते थे ।
9- फिर, कम्पनी की नीति से जिस प्रकार भारतीय कृषि - अर्थव्यवस्था कुप्रभावित हो रही थी, उससे सैनिको पर भी असर पड़ता था , क्योंकि उस समय उसकी आय से ही सारे परिवार के लोगों का पेट भर सके अर्थात कृषि ही उसकी आवश्यकताओं को पूरा करती थी ।
10 सैनिक भी वर्दीधारी किसान 'हीथे, जिस पर लगान का समान बोझ पडता था।
11 इतना तो भारतीय सेना ने बर्दाश्त किया पर, जब उनकी धार्मिक भावना पर चोट की गई तब उन्होंने विद्रोह कर दिया ।
12 लार्ड केंनिंग के समय 1856 मेदि जेनरल सर्विस इनलिस्टमेंट एक्ट के अनुसार यह घोषणा की गई कि भारतीय सैनिको को युद्ध के लिए, समुद्र पारकर विदेश भी जाना होगा ।
(भारतीय समुद्र यात्रा को पाप समझते थे )
13 वे इसका विरोध कर ही रहे थे कि । कम्पनी की सेना में एक नई 'इनफिल नामक राइफल आई' जिसमे गोली लगाने से पहले कारतुसो को मुह से खोलना पड़ा था और कारतुस में चर्बी पूढ़ी होती थी। इसमे गंगो व सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था
14 सैनिको को जैसे ही इस बात का पता चला, उनका क्रोध सीमा पार कर गया।
https://www.edukaj.in/2022/05/the-best-use-of-leisure.html
15. सबसे पहले बेरकपुर छावनी मे मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को ऐसी कारतुस का प्रयोग के लिए विरोध किया ।
16 उन्होंने काफी उत्पात मचाया - अप्रैल 1857 को उसे फांसी दे
गई।
17 6 मई को सैनिको ने फिर विरोध किया ।
18 अब कम्पनी ने भारतीय सैनिको का रूख देखते हुए उनके शस्त्रास्त्र जब्त करना आरंभ कर दिया, सैनिको को सजा दी जाने लगी और उन्हें बड़ी संख्या में केंद्र किया जाने लगा।
19 अंत मे, 10 मई 1857 को सैनिको व्यापक स्तर पर विद्रोह को घोष कर दी और क्रांति की शुरुआत की
1857 की क्रांति का उद्देश्य और समय
★ संगठन:
1 1857 की क्रांति के संबंध में यह कहा जाता है कि इसमें सगठन का अभाव था।
2 इस क्रांति के लिए उद्देश्य, निश्चित समय, प्रचार तैयारी, एकता, नेतृत्व आदि संगठन के सभी आवश्यक तत्वो का दर्शन होता है।
3 क्रांति का संदेश नगरों से लेकर गावो तक सम्प्रेषित किया गया था।
4 संवाद और प्रचार के लिए कमल आदि प्रतीको का प्रयोग किया गया था।
#उद्देश्य :-
https://www.edukaj.in/2022/05/the-best-use-of-leisure.html
1 1857 की क्रांति का उद्देश्य निश्चित और स्पष्ट था।
2 अंग्रेजो को देश से निकालना और भारत को स्वाधीन कराना क्रांतिकारियो का अंतिम लक्ष्य था।
3 यह कहना कि इस क्रांति मे भागू लेने वाले सैनिको जमीदारी या छोटे मोटे शासकों के निजी हित थे, क्रांति के महत्व को कम करने की कोशिश है
4 यह विद्रोह वकता पर आधारित और अंग्रेजी के हुकूमत विरुद्ध था ।
★ समय :
1. सम्पूर्ण देश मे क्रांति की शुरूआत का एक ही समय निर्धारित किया गया था और वह 31 मई 1857 का दिन था |
2. जे. सी विल्सन ने इस तथ्य को स्वीकार किया था और कहा था कि प्राप्त प्रमाणों से मुझे पूर्ण विश्वास हो चुका है कि एक साथ विद्रोह करने के लिए 31 मई 1857 का दिन चुना, 81 गया था।
3 यह संभव है कि कुछ क्षेत्रों मे विद्रोह का सूत्रपात निश्चित समय के बाद हुआ हो। (कई जगह 31 अई के और कई जगह 31 मई से पहले और मेन दिल्ली में था)
4. किंतु, इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि 1857 की क्रांत के सुत्रपात के लिए कोई निश्चित | समय निर्धारित नहीं किया गया था ।
क्रांति की शुरुआत
1. 1857 की क्रांति का सूत्रपात आदि मेरठ छावनी के स्वतंत्रता प्रेमी सैनिक मंगल पांडे ने की।
2. 29 मार्च, 1857 को नव कारतुरते के प्रयोग के उद्देश्य के विरुद्ध विरुद्ध मंगल पांडे ने आवाज़ उठाई ।
3. ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजी सरकार ने भारतीय सेना के उपयोग के लिए जिन व कारतुसों को उपका कराया था उनमे सुअर और गायो का प्रयोग किया गया था।
https://www.edukaj.in/2022/05/marxist-concept-of-freedom.html
4. छावनी के भीतर गूगल पांडे को पकड़ने के लिए जो अंग्रेज अधिकारी आगे बढे, उसे मौत के घाट उतार दिया ।
5. 8 अप्रैल 1857 ई. को गूगलू पाण्डे को फांसी की सजा दे दी।
6. उसे दी गई फांसी की सजा की खबर सुनकर सम्पूर्ण देश, मे क्रांति का माहौल स्थापित हो गया ।
7. 6 मई 1857 को भारतीय सैनिको ने फिर नए कारतुसो का प्रयोग -या किया 1
8 विरोध करने वाले सैनिको को दस पूर्षो के कैद की सजा मिली सैनिकों से हथियार छीन लिए।
9. सैनिकों से हथियार छीने जाने को मेरठ में पुरुषों के साथ महिला ने भी अपमान का विषय समझा ।
10 ऐसी स्थिति में सैनिकों के लिए अग्रेजो से बदला लेना परम कर्तव्य हो गया ।
11. मेरठ के सैनिको ने 10 मई 1857£ में ही जेलखानों को तोड़ना, भारतीय 1) सैनिकों मुक्त करना और अंग्रेजो को मारता शुरू कर दिया ।
12 मेरठ में मिली सफलता से, उत्साहित सैनिक दिल्ली की ओर
बढ़े।
13. दिल्ली आकर क्रांतिकारी सैनिको कर्नल रिप्ले की हत्या कर दी।और दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया
14 इसी समय अलीगढ़, इटावा, आजमगढ़ , गोरखपुर, बुलंदशहर आदि में भी स्वतंत्रता की घोषणा की जा चुकी थी।
https://www.edukaj.in/2022/05/concept-of-liberty.html
1857 की क्रांति
विद्रोह के प्रमुख केंद्र एवं नेतृत्वकर्ता
● यद्यापि 1857 के विद्रोह का नेतृत्व दिल्ली के सम्राट बहादुरशाह जफर कर रहे थे. परंतु यह नेतृत्व औपचारिक एवं नाममात्र था ।
2. विद्रोह का वास्तविक नेतृत्व जनरल बख्त खां के हाथों मेथा जो बरेली के सैन्य विद्रोह के थे अगुआ थे तथा बाद मे अपने सैन्य साथियों के साथ दिल्ली पहुंचे थे।
3 बख्त खां के नेतृत्व वाले दल मे प्रमुख रूप से 10 सदस्य जिनमें से सेना के 6 तथा 4 नागरिक विभाग से थे।
4 यह दल तथा न्यायलय सम्राट के नाम से सार्वजनिक मुद्दों की सुनवायी करता था।
5 . बहादुरशाह जफर का विद्रोहियो पर न तो नियन्त्रण का नही ।
6 . बहादुरशाह का दुर्बल व्यक्तित्व वृद्धावस्था तत्वा विद्रोहियों को योग्य नेतृत्व देने मे सक्षम नहीं थे।
7. कानपुर मे अंतिम पेशवा बाजाराव दवितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब सभी की पसंद थे ।
8. उन्हें कम्पनी ने उपाधि एवं मूहल दोनो से वंचित कर दिया था तथा पुना से निष्कासित कर कानपुर मे रहने पर बाध्य कर दिया था ।
9. विद्रोह के पश्चात नाना साहब ने स्वयं को पेशवा घोषित कर दिया तथा स्वयं को भारत के सम्राट बहादुरशाह के गवर्नन रूप में मान्यता दी।
10 लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व बेगम हजर महल ने किया यहाँ 4 जुन 1857 को प्रारं हुये विद्रोह में सभी की सहानभूति वेगम के साथ थी | यह विरोह कैंपवेल के के द्वार की दबाया गया 1858 में |
11. बेगम हजरत महल के पुत्र बिरजिस कादिन को लखनऊ का नवाब घोषित कर दिया।
12 इसमें हिंदूओ एवं मुसलमानों की समान भागेदारी थी।
13 यहां के अंग्रेज रेजीडेंट हेनरी लारेंस ने अपने कुछ वफादार सैनिकों के साथ ब्रिटिश रेजीडेंसी मे आश्रय लिया।
14. लेकिन विद्रोहियो ने. रेजीडेंसी पर आक्रमण किया तथा हेनरी1 लारेंस को मौत के घाट उतार दिया ।
15 तत्पश्चात ब्रिगेडियर इंग्लिश ने विद्रोहिये का प्रतिरोध किया।
16. बाद मे सर जेम्स आउटमा सर हेनरी हैवलाक ने लखनऊ को जीतने का भवासंभव प्रयास किया पर वे भी सफल नहीं हो सका।
17. नये ब्रिटिश कमांडर इन चीफ सर रेक कोलिन कैम्पबेल ने गोरखा रेजीमेंट की सहायता से मार्च 1858 मे नगर पर अधिकार प्राप्त करने मे सफलता पायी।
- 18 . मार्च 1858 तक लखनऊ पूरी तरह अंग्रेजो के नियंत्रण में आ गया फिर भी कुछ पर स्थानों पर छिटपुट विद्रोह की घटनाये पर्क होती रही ।
19. रोहिलखण्ड के पूर्व शासक के उत्तराधिकारी खान बहादुरखा ने स्वयं को बरेली का सम्राट घोषित कर दिया।
20. कम्पनी द्वारा निर्धारित की गई पेंशन राव से असंतुष्ट होकर अपने 40 हजार सैनिकों की सहायता से खान बहादुर' ने लम्बे समय तक विद्रोह का झंडा बुलंद रखा।
(21) बिहार में एक छोटी रियासत जगदीशपुर के जमींदार कुंवर ने महां विद्रोह का नेतृत्व किया। Aug मे start हुआ मौर 30 1858 में विल्यिम टेलर के द्वारा दबाया गया। और विसेंट के द्वारा ।
22 . इस 70 वर्षीय बहादर जमींदार ते दानापुर से आरा पहुंचने पर सैनिको को सुद्ध नेतृत्व प्रदान किया तथा ब्रिटिश शासन को कड़ी चुनौती दी।
23. फैजाबाद के मौलवी अहमउल्ला 1857 के विद्रोह के अन्य प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे। मे महास के निवासी थे ।
24 बाद मे वे फैजाबाद आ गये थे तथा 1857 विद्रोह के अन्तर्गत जब अवध मे विद्रोह हुआ तब मौलवी अहमदउला ने विद्रोहियो को एक सक्षम नेतत्व प्रदान किया।
25. किंतु 1857 के विद्रोह में इन सभी नेतृत्व मे सबसे प्रमुख नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का था, जिसने झासी मे सैनिकों को ऐतिहासिक का नेतृत्व प्रदान किया |
(26) झांसी के शासक रात की मृत्यु के पश्चात लाई लहौजी ने राजा दत्तक पुत्र को झांसी का राजा माने से इंकार कर दिया ।
27. व्यपगत के सिद्धांत के आधार पूर झासी को कम्पनी के सम्राज्य में मिला लिया ।
28 . तदुपरांत गंगाधर राव की विधवा महारानी लबमीबाई ने ' मै अपनी झांसी नहीं दूंगी" का नारा बुलंद करते हुए विद्रोह का मोर्चा संभाल लिया ।
29 . कानपुर मे पतनोपरातू नाना साहत दूस सहायक तात्या टोपे के झासी पहुंचने पर लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह प्रारंभ कर दिया ।
यह जुन 1857 मे आरंभ हुआ व 3 August 1858 मे हयूरोज के द्वारा दबाया गया ।
30. तात्या टोपे एवं लक्ष्मीबाई की सम्मिलित सेनाओ ने ग्वालियर
की ओर प्रस्थान किया जहां कुछ अन्य भारतीय सैनिक कुछ से आकर मिल गये ।
31. ग्वालियर के शासक सिधिया ने अंग्रेजों का समर्थन करने का निश्चिय किया तथा आगरा मे शरण ली।
32 . कानपुर से नाना साहब ने स्वयं को पेशवा घोषित कर दिया तथा दक्षिण में अभियान करने की भोजना बनायी ।
33. 1857 का विद्रोह लगभग 1 वर्ष से अधिक समय तक विभिन्न स्थानो पर चला तप्पा जुलाई 1858 तक पुर्णतया शांत हो गया।
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1857 की क्रांति
एकता का प्रदर्शन
1. 1857 की क्रांति मे हिंदु और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर भाग लिया।
2 . क्रांति की पुरी तैयारी करने से लेकर करने, क्रांति के क्रियान्वयन तक दोनो सम्प्रदाय के लोगों ने एक-दूसरे का पुरा साथ दिया।
3 . स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अग्रेजो के विरोध मे हिंदुओ और मुसलमानों के बीच वैसी एकता फिर कभी दिखाई नहीं पड़ी ।
4. इसका कारण यह था कि अंग्रेज ने ' फूट डालो और राज करो की नीति को हिंदुओ और मुसलमानो की तोड़ने में लागु नही किया था
5 . फिर अग्रेजी, सरकार ने जिस नए कारतूसों को भारतीय सैनिको के प्रयोग के लिए दिया था, उसमे गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग किया गया था ।
6. इससे दोनों धर्मो के सैनिकों ने अंग्रेजी सरकार का विरोध किया।
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