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जैव-विविधता : समस्याएँ और संभावनाएँ
जैव-विविधता : समस्याएँ और संभावनाएँ
Biodiversity: Problems and Prospects
परिचय
जब हम जैव विविधता की बात करते हैं तो हम आनुवंशिक तनाव, जातिओं और परिस्थितिक तंत्र की बात करते हैं। हम इसे स्थानीय स्तर पर भी पढ़ सकते हैं जैसे कि पृथ्वी, महाद्वीप, स्थान दक्षिण एशिया या देश। पृथ्वी की जैव विविधता हजारों सालों में बनी है और यह मानव सहित अन्य जातियों का जीवन आधार है।
जैव विविधता से हम जंगली और पालतू जातियों की आबादी, पारिस्थितिक तंत्र के अंतर में बारे में जानते हैं। ये ही ग्रह पर जीवन का निर्माण करते हैं। जैव विविधिता वैज्ञानिकों में जिज्ञासा का विषय रही है। परन्तु अब यह चिंता का विषय होती जा रही है। जैव विविधता के विषयों का विकसित और विकासशील देशों पर असर होता है।
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इससे पृथ्वी के तापमान पर भी असर हो रहा है और हम एक ही इलाके में तापमान की चरम सीमा देख सकते हैं। इस पाठ में हम यह समझेंगे कि जैव विविधता क्या है? उसे किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? और परिस्थितिक तंत्र के लिए वह क्यों आवश्यक है? साथ ही हम भारत की जैव विविधता बचाने की कोशिश के बारे में जानेंगे।
जैव विविधता का अर्थ, संरक्षण और बचाव की जरूरत
जैव विविधता का अर्थ जीवित प्रकृति में विविधता है, इसका अर्थ समझना नहीं है। यह जन्तुओं की तुलना है जो अलग प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र में रहते हैं।
मानव के आने से पूर्व पृथ्वी पर भू-वैज्ञानिक इतिहास के अनुसार सबसे ज्यादा जैव विविधता थी। परन्तु मानव के आने से उसमें गिरावट आई है।
जैव विविधता के सरंक्षण में हमें हर जाति को बचाना है साथ ही अपने रिसोर्स को सही ढंग से इस्तेमाल करना है। हमारा उद्देश्य जैव विविधता को बचाना और साथ ही भावी पीढ़ी के लिए संरक्षण करना है। जैव विविधता को बचाने के लिए उसे मापना जरूरी है, जिससे हमें पता चले कि हमें कब, कहाँ और कैसे संरक्षण करना है। हमें आनुवंशिक, जाति और परिस्थितिक तंत्र के स्तर पर मापना है यह इसलिए जरूरी है क्योंकि एक जाति के संरक्षण से हम आनुवंशिक विविधता आसंरक्षण नहीं कर सकते परन्तु जैव विविधता को मापना कठिन है।
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जैव विविधता के संरक्षित क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से डिजाइन व संचालित किए जाते हैं। ये क्षेत्र जाति विविधता, विलुप्त होती जातियों और पारंपरिक फसलों के संरक्षण के लिए विशेष उपयोगी हैं।
नैतिक तर्क-जैविक विविधता का हमें तीनों स्तर जीन, जाति और परिस्थितिक तंत्र पर संरक्षण करना है। नैतिक स्तर पर हमें पृथ्वी की जैविक विविधता को बचाना है, उनके आज के जीवन के अनुसार परन्तु नैतिक स्तर पर सभी जातियों को बयाना नामुमकिन है। नैतिक स्तर पर हाथी की करिश्माई जाति को न मारना समझा जा सकता है परन्तु इस हिसाब से तो चावल जिसकी आनुवंशिकता में फेर-बदल किया गया है या कीड़े-मकोड़ों को मारना भी गलत होना चाहिए क्योंकि इससे आनुवंशिक विविधता कम हो रही है।
आर्थिक तर्क-जैविक विविधता को कमाई की दृष्टि से भी देख सकते हैं। आर्थिक कमाई को उपयोगी और अनुपयोगी वस्तुओं की दृष्टि से देख सकते हैं।
आर्थिक मूल्यांकन दिखाता है कि जैव विविधता के घटने से हमें कितना घाटा होता है। जैसे जीविका कमाने में कठिनाई, रोजगार में कमी, आय में कमी, विदेशी मुद्रा में कमी और जैविक रिसोर्सेस को ठीक करने का खर्चा ।
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आर्थिक मूल्यांकन के नए तरीके जैविक विविधता की वित्तीय और गैर वित्तीय कीमत का मूल्यांकन करते हैं। विश्व पर्यटन जैव विविधता का कारण बढ़ाता है और यह दक्षिण एशिया से में कमाई का प्रमुख साधन भी है।
इसी प्रकार जातियों के वास की भी कीमत होनी चाहिए। आर्थिक मूल्यांकन मौद्रिक और गैर मौद्रिक कीमतों का आकलन करता है।
सांस्कृतिक और राजनैतिक तर्क-राजनैतिक मूल्यांकन विद्वानों, मीडिया और सरकारी कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। राजनैतिक तर्क नागरिकों द्वारा बातचीत और राजनैतिक गतिविधियों के विचार-विमर्श के लिए इस्तेमाल किया जाता है। राजनैतिक तर्क गोल है क्योंकि उन्हें तर्कों का बार-बार अलग परिसर में अलग प्रयोग किया जाता है। राजनैतिक तर्क का वैसे तो कोई खास फायदा नहीं है, परन्तु यह सरकार के औचित्य और इतिहास की कथा बनाने के काम आता है।
राजनैतिक तर्क का स्वभाव मानक होता है। कथित सत्य को बताना भी इसका स्वभाव है। संस्कृति की ओर हमारा ध्यान उसकी समाज बनाने की केन्द्रियता के कारण आकर्षित होता है। संस्कृति को सामाजिक इतिहास में उसकी मानव पर केन्द्रियता के कारण पड़ा जाता है। दूसरे शब्दों में संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को षित की जाती है। हमें बनाने में समाज और संस्कृति का विशेष थ है।
संस्कृति मानव के जीवन के हर पहलू पर असर डालती है। संस्कृतिक बदलाव को समाज में उसके काम और जैविक विविधता से जान सकते हैं।
नई और उभरती जैव विविधता संरक्षण की चेतावनी
जैव विविधता वैज्ञानिकों की जिज्ञासा को केन्द्र रही है। परन्तु अब वह चिंता का विषय बन गई है। मानव के प्रभाव से जातियों की विविधता घट रही है। जैव विविधता उत्पादकता बढ़ाने का मूल आधार है। यह जैव प्रौद्योगिकी व्यवसाय को फीड स्टॉक देती है। दक्षिण के देश जैव विविधता का घर हैं परन्तु औद्योगीकृत देश जैव विविधता को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। जैव विविधता का विकसित और विकासशील देशों पर अलग-अलग असर है।
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भारत ने जैव विविधता को बचाने के लिए अनेक कार्य किए जिसके लिए उसके पास अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का व्यापक विचार मर्श, बड़े समझौते हैं CBD (1993) और TRIPS (1993)।
नागरिक समाज का जैव विविधता बचाने का संघर्ष
नागरिक समाज पर्यावरण के विचार-विमर्श में जैव विविधता बचाने पर जोर डाल रहा है। जैव विविधता मानवता को एक वरदान इसलिए कई देशों के प्रदर्शनकारी इसे बचाने पर जोर दे रहे हैं। अनेक तरीकों से फैसला करने वाली समिति का हिस्सा बनना चाहते हैं। नागरिक समाज का जागना जैव विविधता के लिए अवश्यक कदम है। जब नागरिक एकत्रित होकर स्वयं प्रेरित कार्य करते हैं तो नवाचार आने स्वभाविक हैं। पर्यावरण शासन में नागरिक की भूमिका पुरानी है जैसे कि ब्रिटेन में रॉयल सोयाइटी फॉर द प्रोटेक्टशन ऑफ बर्डस और अमेरिका का साइरा क्लब उन्नीसवीं शताब्दी से कार्यरत हैं। परन्तु अब नागरिक समाज और बड़ा हो गया है। पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत से गैर-सरकारी संगठन आगे आए हैं। गैर सरकारी संगठनों की गणना का पता लगाना बहुत कठिन है क्योंकि उन्हें अलग-अलग तरीके से गिना जाता और परिभाषित किया जाता है।
जैव विविधता बचाने में भारत का योगदान
पर्यावरण का गिरता स्तर देखकर अन्तर्राष्ट्रीय कानून पर्यावरण का भी ध्यान रखने लगा है। भारत भी इसमें भागीदारी कर रहा है क्योंकि प्रदूषण देश की सीमाओं के बाहर भी जा रहा है। विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एग्रीमेंट बनाए गए हैं।
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भारत में जैव-विविधता के दो प्रमुख स्थान हैं पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय जो दुनिया के आठ प्रमुख स्थानों में से हैं। भारत में दस जैव भौगोलिक स्थान, दो बड़े स्थान पैलियोआर्कटिक और भारत-मालयन तथा बायोमास उष्णकटिबंधीय नम जमीन और जंगल, उष्णकटिकबंधीय पतनशील जंगल और गर्म रेगिस्तान और अर्ध रेगिस्तान हैं। फसलों में उपजाऊ मिट्टी और मिट्टी का अच्छा रख-रखाव हमें भूखा मरने से बचाता है। साथ ही विभिन्न प्रकार का चारा व बीज आदि देता है।
विभिन्न समझौतों का निर्माण किया गया है जैसे कि TRIPS| भारत के लिए TRIPS समझौते को मानना जरूरी है जिसके अनुसार सूक्ष्म जीव गैर जैविक और सूक्ष्म जैविक कार्य पेटेंट के लिए योग्य हैं।
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