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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

Discuss the establishment and working of International Monetary Fund and World Bank

 Discuss the establishment and working of International Monetary Fund and World Bank

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना एवं कार्य प्रणाली की विवेचना कीजिए।




 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) - 


विश्व की आर्थिक समस्याओं को हल करने हेतु विकसित राष्ट्रों ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रकट उद्देश्य है फण्ड के सदस्य देशों की मुद्राओं को स्थिरता बनाए रखना और इसके द्वारा व्यापार को प्रोत्साहन देना। जो राष्ट्र आई.एम.एफ. के सदस्य बनते हैं वे स्वर्ण और संयुक्त राज्य के डॉलर में अपनी मुद्राओं के कानूनी मूल्य की घोषणा करते हैं। कोष की स्वीकृति के बगैर वे इस कानूनी मूल्य को 10% से अधिक नहीं बदल सकते। साथ ही उन्हें कोष के पास एक निश्चित मात्रा में सोना या डॉलर और एक निश्चित मात्रा में अपनी मुद्रा जमा करनी पड़ती है। इस प्रकार इकट्ठी हुई राशियाँ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मुद्राओं की परस्पर स्थिरता बनाए रखने के लिए इस्तेमाल करता है। यदि किसी राष्ट्र के लिए स्वर्ण या डॉलरों की अस्थायी कमी पैदा हो जाए तो वह कुछ सीमाओं के अन्दर कोष से उधार ले सकता है।


IMF की स्थापना का उद्देश्य 19वीं शताब्दी की समस्याओं और प्रथम विश्वयुद्ध की विभषिका से उठाना। यह एक समूह सहयोगी रहा है जोकि मुद्रा स्थितिकरण में सहायक है।



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विश्व बैंक (World Bank) -

 अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक दूसरी बड़ी आर्थिक संस्था है जो द्वितीय विश्व युद्ध में से पैदा हुई। जो कार्य करने के लिए उसकी योजना की गयी थी। उसके लिए वह भी अपर्याप्त है। यह समझा जाता था कि वह विकास प्रायोजनाओं के लिए बिल्कुल सही बैंकिंग सिद्धांतों के आधार पर ऋण देगी। कल्पना यह की जाती थी कि वे ऋण लगभग अपने आप ही चुकता हो जाने वाले होंगे और वे अपेक्षाकृत उच्च ब्याज दर पर ही दिए गए हैं-इन दोनों बातों ने बैंक की उपयोगिता कम कर दी। जो भी हो, इसकी सबसे बड़ी एक सीमा इस तथ्य में थी कि उसके पास वास्तव में ही इतने पैसे नहीं हैं कि जो कार्य करने की आवश्यकता है उसे वह कर सके। किन्तु बैंक आज सहयोगी समूह के रूप में वैश्विक मंच पर सर्वाधिक उन्नत है।


जिन समस्याओं का हल उसके द्वारा होने की अपेक्षा की जाती थी उनका अधिक यथार्थवादी अनुभव किया गया है। इस प्रकार आई.बी.आर.डी. की अपेक्षा लौटाये जाने की काफी कम गारंटी पर अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम ऋण देता है। अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ डॉलरों और दूसरी दुर्लभ मुद्राओं में ऋण देता है जो विकासशील देशों द्वारा अपनी मुद्राओं में ही लौटाए जा सकते हैं। किन्तु आई.बी. आर.डी. की इन सहायक संस्थाओं के साधन अभी बहुत कम है और वे तथा विश्व बैंक अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नाकाफी हैं।


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यदि अल्पविकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास में उनकी सही अर्थों में प्रभावी सहायता की जानी है ताकि जिस रफ्तार से उनकी जनसंख्याएं बढ़ रही है उससे अधिक गति से उनकी अर्थव्यवस्थाएँ विकास करें, तो काफी विविधतायुक्त और लोचदार कार्यक्रम की जरूरत है। वह इस प्रकार को कार्यक्रम होगा जिसमें अलग-अलग उद्योगीकृत देशों की सरकार के प्रयत्न भी शामिल होंगे और इस · समय विद्यमान या नयी बनाई गयी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की बहुत बढ़ाई हुई गतिविधियाँ भी होंगी तथा अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की भूमिका को मजबूत करने पर हो रही बहस में रेटिंग एजेंसियों की भूमिका भी शामिल है। इन एजेंसियों द्वारा दी गयी रेटिंग ने एशिया में निर्णयों को प्रभावित किया है। नयी पूँजी पर्याप्तता, रूपरेखा जोखिम-भार निर्धारित करने की सम्भावना को बैंकों के पास उपलब्ध एक विकल्प के रूप में देखा जाता है। विश्व वित्तीय प्राधिकरण (W.F.A.) नामक एक नए निर्माण के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों तथा बाजारों के ओवरसियरों के बोर्ड के निर्माण के लिए एक प्रस्ताव सामने लाया गया। प्रस्तावित विश्व | वित्तीय प्राधिकरण के लिए विभिन्न मॉडलों की कल्पना की गयी। एक प्रस्ताव में सभी वित्तीय उद्यम कोषों तथा बीमा कम्पनियों के साथ बैंकों और ऑफ-शोर व ऑन-शोर उद्यमों के लिए विनियमन मानक निर्धारित करने के साथ एक संगठन की स्थापना की बात कही गई।


राष्ट्रीय विनियामक ही डब्ल्यू. एफ. ए. द्वारा निर्धारित मानकों के कार्यान्वन के लिए जिम्मेदार होंगे। इस प्रकार एक और योजना में डब्ल्यू. एफ. ए. की कल्पना एक ऐसे संरक्षक संगठन के रूप में की गयी, जिसमें विद्यमान समूहों को एक साथ लाया जा सके। बहरहाल, यह सुस्पष्ट है कि ऐसे संस्थान की स्थापना एक जटिल प्रक्रिया है। एक मध्यवर्ती उपाय के रूप में हाल में ही वैश्विक वित्तीय विनियमन के लिए एक नयी तथा स्थायी समिति गठित करने के लिए डेवलपमेंट कमेटी में सुझाव रखा गया। अंततः विश्व बैंक एवं IMF द्वारा विश्व की आर्थिक स्थिति एवं सामाजिक. अव्यवस्था से निपटने का प्रयत्न किया जा रहा है हालांकि यह भी  माना जाता है कि इस समूहों पर विकसित देशों का वर्चस्व है।





वित्तीय स्थिरता मंच (Financial Stability From) - जी- 7 देशों के वित्त मंत्रालयों, केंद्रीय बैंकों व विनियामक प्राधिकारों के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, बेसल समिति, आई.ओ.एस.सी. ओ. बीमा सुपरवाइजरों को अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, बी.आई. एस.ओ.ई.सी.डी., वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर समिति तथा भुगतान व निपटारा प्रणाली पर गठित समिति के प्रतिनिधि औद्योगिक देशों द्वारा गठित वित्तीय स्थिरता मंच (FSF) के अंतर्गत होंगे। यह - प्रस्ताव रखा गया है कि इस फोरम में अन्य औद्योगिक देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं से भागीदारों को शामिल करके इसे विस्तृत किया जाना चाहिए, ताकि उसे अधिक प्रभावी बनाया जा सके। जी-20, जो जी-33 के स्थान गठित किया गया था, में विकसित देशों के प्रतिनिधि शामिल थे।


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नयी व्यवस्थाएँ

देशों या वित्तीय बाजारों की अन्तर्राष्ट्रीय आधिकारिता तरलता को अभिपूर्ति के द्वारा नयी व्यवस्थाओं पर चर्चा की जा रही है, जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को अंतिम सहारे | के ऋणदाता के रूप में कार्य करने के लिए माध्यम और अधिकार | दिए जाने का विषय भी शामिल हैं। सामान्यतः यह माना जाता है | कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को अन्तर्राष्ट्रीय तरलता उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहना चाहिए। कोषों की पर्याप्तता से संबंधित बड़े मुद्दे में वृद्धि, एस.डी.आर. विनिधान, स्रोत आधार में वृद्धि के लिए स्वर्ण का विक्रय और सदस्यों द्वारा बढ़ती उधारी से संबंधित है।


विश्व बैंक का उत्तरदायित्व और वैधता बढ़ाने वाले प्रस्तावों पर भी कुछ ध्यान दिया गया है। अंतिम सहारे के ऋणदाता की स्थापना वाले प्रस्ताव के संबंध में कहा गया कि कोई आवश्यकता नहीं है। इसके पक्ष में यह तर्क दिया गया कि संकट प्रबंधन (क्राइसिस मैनेजमेंट) का एक बेहतर रूप ऋणदाता एवं ऋण प्राप्तकर्त्ता के संबंधों को सुधारना होगा, जिसमें ऋण देने की व्यवस्थित प्रक्रिया और अस्थायी विरामों के लिए व्यवधाएँ शामिल होंगी। आपातकालीन गतिसंघ और व्यवस्थित ऋण-प्रक्रिया के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय अदालत स्थापित करने का सुझाव रखा गया लेकिन इसे व्यावहारिक नहीं पाया गया। एक विकल्प के रूप में यू.एन.सी.टी.ए.डी. ने एक स्वतंत्र पैनल गठित करने का सुझाव दिया है। इस प्रकार नए संस्थानों और नयी व्यवस्थाओं पर नए सुझावों की कोई कमी नहीं है। फिर भी इस समय एक सही अनुमान यह है कि क्रियान्वयन प्रक्रियाओं तथा प्रबंधन संरचनाओं में कुछ बदलावों के साथ वर्तमान संस्थागत संरचना कमोबेश अक्षुण्ण रहेगी।



https://www.edukaj.in/2022/02/take-health-insurance-and-save-your.html




निष्कर्ष 


दो महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर नयी सहस्राब्दी में वित्तीय सहयोग के लिए व्यवस्थाओं पर विचार करते समय विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। एक कठोर वास्तविकता, पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को अनिवार्य रूप से ध्यान देना चाहिए, यह है कि विकसित तथा विकासशील देशों या पूंजी बहल तथा पूंजी उधार देने वाले देशों के बीच समान सहभागिता के बिना ये नयी व्यवस्थाएं सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकती हैं। हाल के इतिहास ने विश्व स्तर पर सभी देशों वे बीच नजदीकी सम्पर्क की आवश्यकता पर बल दिया है, चाहे वे ऋणदाता देशों को अधिक गंभीरता से शामिल करने के ताजा प्रयास स्वागत योग्य हैं, लेकिन अब तक के ये प्रयास नहीं हैं। नयी वित्तीय संरचना पर निर्णयन-प्रक्रिया के लिए संस्थागत व्यवस्थाएँ अब भी औद्योगिक देशों के पक्ष में झुकी हुई है। कई चुनौतियों और ब्रिटेन वुड्स संस्थानों की एक ओर झुकी हुई वोटिंग संरचना के बावजूद, कुल मिलाकर वर्तमान में आम सहमति यह है कि फिलहाल नए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के निर्माण की कोई अनिवार्यता नहीं है।


अभी विद्यमान ब्रेटन द्वारा वुड्स संस्थानों को अधिक अनुकूल तथा उत्तरदायी बनाने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अब इन संस्थानों में विकासशील देशों को अधिक प्रतिनिधित्व देना और उन्हें अधिक मत शक्ति देना आवश्यक है। यह पिछले चालीस वर्षों की एक विडम्बना है कि विकासशील देशों ने एक समूह के रूप में विकसित देशों से अधिक तेजी से विकास किया है और उत्पादन तथा व्यापार के संदर्भ में उनकी अपेक्षाकृत आर्थिक शक्ति में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है; लेकिन ब्रिटेन वुड्स संस्थानों में उनकी वास्तविक मत शक्ति का ह्रास हुआ है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में कोटा निर्धारण तथा विश्व बैंक में पूँजी वृद्धि के अगले दौर से इसे सुधारना आवश्यक है।


अंत में विकासशील देशों के लिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि हम अपनी बैंकिंग तथा वित्तीय प्रणालियों को मजबूत करने और उन्हें बेहतरीन अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने को उच्चतम प्राथमिकता दें।


आरंभिक विकास अर्थव्यवस्थाओं में प्रगति तथा विकास नीतियों के एक अनिवार्य तत्त्व के रूप में वित्तीय मध्यस्थता की भूमिका पर बहुत कम या नगण्य ध्यान दिया जाता है। उस समय घरेलू बचत और निवेश दर बढ़ाने तथा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप द्वारा औद्योगिकीकरण की गति में वृद्धि के उपायों पर ध्यान केंद्रित किया जाता था। उस समय की वास्तविकताओं और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह उपयुक्त लगता है उस समय के विश्व से आज का विश्व बहुत बदल चुका है। घरेलू बचत को गतिशील करने तथा उनके विनिधान में वित्तीय मध्यस्थों की भूमिका के साथ बाह्य पूँजी अब बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। पूर्वी एशियाई संकट ने प्रगति और विकास की गति बरकरार रखने में वित्तीय संस्थानों के महत्व को भी दिखाया है। अब विकासशील देशों के लिए मजबूत विवेकसम्मत तथा पर्यवेक्षी नियमों के प्रवेश तथा वित्तीय प्रणाली को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक अधिक पारदर्शी तथा और अधिक उत्तरदायी बनाने के लिए संरचनात्मक सुधारों के अंगीकरण को विलंबित करना संभव नहीं हैं।


अन्तर्राष्ट्रीय वित्त कॉर्पोरेशन-


निजी क्षेत्र को वित्त प्रदान करने के लिए विश्व बैंक के एक साथी (Affiliate) के तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय वित्त कार्पोरेशन (IFC) जुलाई, 1959 में स्थापित हुई । विश्व बैंक सदस्य देशों की सरकारों को ऋण देता है या निजी को सदस्य सरकारों की गारण्टी पर पूँजी ऋण प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त विश्व बैंक जोखिम पूंजी प्रदान नहीं करता। IFC की स्थापना इस खास उद्देश्य के लिए हुई कि कम विकसित देशों में निजी उद्यमों को बिना किसी सरकारी गारण्टी के जोखिम पूँजी प्रदान करना।

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