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What is the right in the Indian constitution? Or what is a fundamental right? भारतीय संविधान में अधिकार क्या है ? या मौलिक अधिकार क्या है ?

  भारतीय संविधान में अधिकार क्या है   ? या मौलिक अधिकार क्या है ?   दोस्तों आज के युग में हम सबको मालूम होना चाहिए की हमारे अधिकार क्या है , और उनका हम किन किन बातो के लिए उपयोग कर सकते है | जैसा की आप सब जानते है आज कल कितने फ्रॉड और लोगो पर अत्याचार होते है पर फिर भी लोग उनकी शिकायत दर्ज नही करवाते क्यूंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती | आज हम अपने अधिकारों के बारे में जानेगे |   अधिकारों की संख्या आप जानते है की हमारा संविधान हमें छ: मौलिक आधार देता है , हम सबको इन अधिकारों का सही ज्ञान होना चाहिए , तो चलिए हम एक – एक करके अपने अधिकारों के बारे में जानते है |     https://www.edukaj.in/2023/02/what-is-earthquake.html 1.    समानता का अधिकार जैसा की नाम से ही पता चल रहा है समानता का अधिकार मतलब कानून की नजर में चाहे व्यक्ति किसी भी पद पर या उसका कोई भी दर्जा हो कानून की नजर में एक आम व्यक्ति और एक पदाधिकारी व्यक्ति की स्थिति समान होगी | इसे कानून का राज भी कहा जाता है जिसका अर्थ हे कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नही है | सरकारी नौकरियों पर भी यही स

Sustainable Human Development: Issues and Livelihood, Health and Education

  सतत मानव विकास : आजीविक - स्वास्थ्य और शिक्षा तथा मुद्दे


(Sustainable Human Development: Issues and Livelihood, Health and Education




परिचय


दीर्घकालिक मानव विकास वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रमुख मुद्दा है। मानव के बदलते जीवन के अनुसार शिक्षा एवं स्वास्थ्य के मुद्दे भी बदल रहे हैं। दीर्घकालिक विकास के पथ पर चलने के लिए राष्ट्रों को अपनी नीति बदलनी पड़ेगी। पिछले कुछ सालों में पर्यावरण को बचाने के लिए सक्रियता बढ़ती जा रही है।


पर्यावरण के बढ़ते संकटों ने उभरती हुई नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। पर्यावरण का विकास और नीतियों के विकास के लिए पुनर्जीवन संरक्षण और नई तकनीक का बढ़ावा दीर्घकालिक विकास के लिए जरूरी है।


इस अध्याय में दीर्घकालिक विकास से संबंधित खाद्य सुरक्षा. आजीविका पोषक तत्वों की कमी आदि का अध्याय करेंगे। इस अध्याय हम मानव संसाधन विकास और शिक्षा के दीर्घकालिक विकास पर असर देखेंगे।


अध्याय का विहंगावलोकन


भोजन तथा आजीविका तक पहुँच भोजन सबकी जरूरत है। भोजन की आदतें खाद्य की सप्लाई,


क्षेत्र, समाज और मानव की इच्छा पर निर्भर है। भोजन सिर्फ पूरी मात्रा में ही नहीं बल्कि पोषक भी होना चाहिए। अच्छी सेहत के लिए पोषक भोजन जरूरी है।


खाद्य की पैदावार पर मानव का पूरा नियंत्रण है। आबादी के बढ़ने से हमारे संसाधन कम पड़ने लगे हैं। पिछले कुछ सालों में बेकार भोजन करने से राष्ट्र अस्वस्थ हो रहा है। जिससे मानव की क्षमता घटती है। देश के आर्थिक विकास के लिए नागरिकों के लिए अच्छा भोजन ग्रहण करना जरूरी है।


https://www.edukaj.in/2022/08/discuss-establishment-and-working-of.html







भोजन रक्षा में स्थिरता


भोजन में स्थिरता अर्थव्यवस्था के कुशल होने का सूचक है। यहाँ पर हम भोजन स्थिरता के सूचक के बारे में जानेंगे।


भोजन रक्षा में स्थिरता के संकेतक यह एक टिकाऊ सूचक है जो हमें भविष्य के विकास के लिए नीतियाँ चुनने में मदद करेगा। राज्य को आज और कल के बीच में तालमेल बनाने के लिए पर्यावरण मैत्री के तरीके जरूरी हैं। इनका उद्देश्य स्वच्छ पर्यावरण, पानी और वातावरण है।


भोजन संरक्षण के टिकाऊ संकेतक इसके कुल मिलाकर 17 सूचक हैं। इन सूचकों को हम मुख्य तीन भागों में बाँट सकते हैं। उपलब्धता सूचकांक, पहुँच सूचकांक और अवशोषण सूचकांक अन्य वर्ग हैं- 


(क) भारितशुद्ध बोया क्षेत्र-यह पैदावार की भूमि और भोजन की पैदावार है।


(ख) शुद्ध बुवाई क्षेत्र में प्रतिशत- यह सूचक दिखाता है कि फसल कहाँ तक फैला सकते हैं।


(ग) अनएक्पलोटिक भविष्य-यह भोजन की हर इंसान की खपत दिखाता है।


(घ) व्यक्तिवन क्षेत्र प्राप्ति-यह सूचक जंगल का दायरा दिखाता है।

उपयोग के लिए जल


(ङ) सतही जल का स्तर यह सूचक पानी के उन स्रोतों को बताता है, जिन्हें अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया


(च) खराब जमीन का प्रतिशत- यह सूचक भौगोलिक नक्शे पर खराब क्षेत्रफल को दिखाता है।


 (छ) फली की फसल यह फली की फसल के बारे में बताते हैं।


(ज) जमीनी जल का भविष्य में इस्तेमाल- यह सूचक उन पानी के स्रोतों को बताता है जिन्हें भविष्य में इस्तेमाल किया जा सकता है।


https://www.edukaj.in/2022/08/blog-post.html




आर्थिक सुधार तथा खाद्य सुरक्षा


गरीब लोगों को भोजन का आश्वासन जरूरी है। यह बहुसांस्कृतिक व्यापार में प्रमुख स्थान लेता है। भारत की नीतियों द्वारा कई राज्यों में चावल और गेहूं की पैदावार बढ़ी है। परन्तु गरीब लोगों को अनाज पहुँचाना कठिन है। इसके लिए भारत सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा गरीबों को कम दाम में अनाज देती है।


माराकेश में 1995 में विश्व व्यापार संगठन ने फसल के लिए समझौता किया, जिससे इसमें आर्थिक सुधार आया। भोजन सामाजिक और धार्मिक जीवन में प्रभाव डालता है। खाना खाने का तरीका हमारा समाज निश्चित करता है। खाना इकट्ठा खाने से प्यार, पारस्परिक निर्भरता, भाईचारा बढ़ता है। आर्थिक सुधार के भी कई मुद्दे हैं। आर्थिक सुधार पैदावार, रोजगारी और आर्थिक वृद्धि चाहते हैं। कृषि प्रधान देश में सुधार लाने के लिए खेती-बाड़ी को बढ़ावा देना जरूरी है।




https://www.edukaj.in/2022/05/how-to-solve-natural-environment.html




स्वास्थ्य


स्वास्थ्य विभाग भी अन्य किसी विभाग की तरह ही जरूरी है। विश्व विकास रिपोर्ट 1993 के अनुसार गरीब देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1-3 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं जबकि अमीर देश 10-12 % खर्च करते हैं। भौगोलिक कारण भी मानव स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। खराब सेहत का कारण कुपोषण है जिसके कारण संक्रामक रोग होते हैं। स्वच्छता, शिक्षा.. पोषक भोजन अच्छी सेहत को बढ़ाते हैं और नैतिकता एवं रोगों को घटाते हैं। यह पर्यावरण पोषण के लिए हानिकारक हो सकता है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वास्थ्य को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तौर पर स्वस्थ समझने की सिर्फ बीमारी मुक्त होना। यह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक अवस्था को संबंधित मानते हैं। सामाजिक पोषण आबादी की पोषक जरूरतों को पूरा करते हैं।


पैदावार बढ़ाने के लिए न ही सिर्फ राष्ट्रों का एकीकरण बल्कि राज्यों का भी एकीकरण हुआ है।


पिछले कुछ सालों में गरीबी में कमी और स्वास्थ्य और शिक्षा में उन्मूलन आया है। स्वास्थ्य कई तथ्यों पर निर्भर करती हैं, जिनमें से कई इंसान द्वारा बनाए गए हैं और कुछ उसके कंट्रोल से बाहर हैं।


https://www.edukaj.in/2022/02/adulterated-food-essay.html




सूक्ष्म पोषण तत्त्वों की कमी


पोषण निगरानी ब्यूरो और क्षेत्र पोषण संस्थान सूक्ष्म पोषण तत्वों की कमी के बारे में जानकारी एकत्रित करते हैं। यह मानव संसाधन के अन्तर्गत आता है। वैश्विक बीमारियों में सूक्ष्म पोषण तत्वों का प्रमुख स्थान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और राष्ट्र संघ इसके बारे में जागरूकता फैला रहे हैं।


पोषण, भोजन का विज्ञान है, यह पोषक तत्वों और अन्य सामग्रियों के बीच का तालमेल है। यह स्वास्थ्य और बीमारियों के बीच का रिश्ता बताता है। भोजन करने की क्रियाएँ जैसे निगलना, पचाना, अवशोषण और भोजन को परिवहन सामाजिक, आर्थिक,सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। भोजन और पोषण हमें बीमारियों से बचाने और नियंत्रित करने के लिए आवश्यक हैं।


पौष्टिक भोजन हमें बीमारियों से बचाता है। सूक्ष्म पोषक तत्व पेड़-पौधों की मनौवैज्ञानिक गड़बड़ के कारण होता है। यह कम मात्रा में पेड़-पौधों के लिए आवश्यक है। यही बीमारी पोषक तत्वों की कमी के कारण नहीं हुई है, तब भी संतुलित आहार उसे आगे बढ़ने से रोकता है। असंतुलित आहार बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण है। दवाइयाँ और संतुलित आहार कई बीमारियों का इलाज है। संतुलित आहार मानव को गरीबी से बचाने का सबसे सक्षम उपाय है।


लोहा-एनिमिया शरीर में लौह तत्त्व, की कमी से होता है। भारत में लगभग 50 प्रतिशत आबादी एनिमिया की शिकार है। मातृ एवं शिशु पोषण अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन 1992 में 159 देशों के कुपोषण रोकने के लिए विश्व घोषणा और पाषण पर कार्रवाई की घोषणा की यह विटामिन ए और खासकर लोहे की कमी आसानी से उपलब्ध भोजन द्वारा पूरी की जाए। मानव का पोषण मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर निर्भर करता है।


माँ का दूध 6 महीने तक बच्चे के लिए अति उत्तम है। उसके बाद अन्य भोजन भी जरूरी हैं। जूस, सेब, केला, पपीता, खीर, अंडा, खिचड़ी आदि चीजें शिशु को दी जा सकती हैं।


गरीबी उन्मूलन और भूख


विकासशील देशों में गरीबी, कुपोषण, संक्रामक बीमारियां, परजीवी बीमारियाँ, भोजन, जल की कमी प्रमुख मुद्दे हैं। वे वैश्विक ताप और ओजोनरिक्तीकरण की ओर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। आर्थिक विकास केवल गरीबी हटाने के लिए ही नहीं परंतु खुशहाल जिंदगी के लिए भी जरूरी है।


भारत जैसे विकासशील देशों में बहुत से लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। गरीबी को हटाना आसान नहीं है। मौजूदा सामाजिक आर्थिक स्तर पर यह बहुत मुश्किल है। इसके लिए हमें वंचित लोगों को जरूरत पूरी करने के लिए अवसर देना जरूरी है।


पूँजीवादी निवेश गरीबी की समस्या पर बल देता है तथा अमीरी और गरीबी की खाई को बढ़ाता है। देश को विकास के लिए सामाजिक व्यवस्था की जरूरत है, जिससे अमीरी-गरीबी की खाई भरे। ठेके और बेरोजगारी से बचने के लिए मजदूरों को सिंचाई, घर बनाने आदि के काम देने चाहिए, मजदूरों की मजदूरी बढ़ानी चाहिए, जिससे वे अच्छी जिंदगी जी सकें। नहीं तो समाज में गरीबी और अमीरी का अंतर बना रहेगा।




https://www.edukaj.in/2022/02/adulterated-food-essay.html





मानव संसाधन विकास और शिक्षा


आज का वाद-विवाद सन् 1990 से शुरू हुआ था, जब राष्ट्रीय संघ विकास प्रोग्राम ने हर राष्ट्र का मानव विकास देखा था। मानव विकास की मुख्य चिंता यह है कि विकासशील देशों का आर्थिक विकास नागरिकों को ध्यान में रखते हुए हो।


मानव संसाधन विकास वितरण नीतियों पर जोर देता है। मानव संसाधन विकास नापने के तीन सूचकांक हैं।


 (क) जीवन स्तर नापने के लिए सकल घरेलू उत्पाद,


(ख) शिक्षा का स्तर नापने के लिए वयस्क साक्षरता दर।


(ग) स्वास्थ्य स्तर के लिए जीवन प्रत्याशा।


मानव संसाधन का विकास सब्सिडी पर आधारित है। यह इस पर निर्भर करता है कि सरकार इन तीन सूचकांक के लिए कितनी सब्सिडी दे सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार किन को महत्त्वपूर्ण मानती है।


आज का वाद-विवाद UNDP के कार्य के कारण है। इसकी मुख्य चिंता राष्ट्र का आर्थिक विकास है। मानव विकास वितरण नीतियों पर जोर देता है जबकि मानव संसाधन विकास उत्पादन नीतियों पर जोर देता है।


• ऊपर लिखित तीन सूचकांक जीवन स्तर को नापते हैं। वयस्क साक्षरता दर और जीवन प्रत्याशा दर अर्ध सार्वजनिक हैं, जो सब्सिडी से प्रभावित होते हैं।


सब्सिडी उन सामानों पर दी जाती है जिन्हें सरकार आर्थिक विकास के लिए जरूरी समझती है। पूँजी का निर्माण, मानव विकास और आर्थिक विकास देश में इकट्ठे होता है, ये तीनों ही | देश से गरीबी हटाने का प्रयास करते हैं।


मानव बस्ती


अन्तरराष्ट्रीय समाज कहता है कि हर व्यक्ति को भोजन, मकान, , शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिए। विकासशील देशों के लिए इन्हीं जरूरी सामानों को देना सबसे बड़ी चुनौती है जबकि विकसित देश यह काम आसानी से कर सकते हैं। राष्ट्र संघ का मानव बस्ती पर सम्मेलन इस बात पर जोर देता है कि हर व्यक्ति के पास रहने के लिए मकान हो। सामाजिक एकीकरण


राष्ट्र संघ सामाजिक एकीकरण को 'सबके लिए समाज' द्वारा समझाता है। सामाजिक एकीकरण के अनुसार व्यक्ति के पास अपने अधिकार और जिम्मेदारियाँ होनी चाहिए। समाज में मौलिक आजादी एक जैसे मानव अधिकार, विविधता के लिए सम्मान, बराबर अवसर, सब्र और बोलने की आजादी होनी चाहिए। दीर्घकालिक आजीविका की राह पर  दीर्घकालिक विकास द्वारा हम तकनीक और समाज की जरूरतों और पाबंदियों को आज और कल के लिए समझते हैं। | दीर्घकालिक विकास पर्यावरण नीतियों और विकास की तकनीकों के बीच एकीकरण करता है, जिसका प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय राज्य और सामाजिक स्तर पर होता है।


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